गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
नशा मुक्ति केंद्र, जो कि नशे के शिकार लोगों को एक नई जिंदगी देने के उद्देश्य से खोले जाते हैं, अब अवैध कमाई के साधन बनते जा रहे हैं। इन केंद्रों की आड़ में जहां एक ओर परिवार अपने परिजनों की बेहतर देखभाल की उम्मीद लेकर उन्हें यहां भर्ती कराते हैं, वहीं दूसरी ओर हकीकत इससे एकदम अलग और दर्दनाक है।
मोटी रकम वसूलने का अड्डा
हाल ही में सामने आई कई रिपोर्टों और शिकायतों में पाया गया है कि अधिकांश नशा मुक्ति केंद्र बिना उचित लाइसेंस के चल रहे हैं। प्रशासन की आंखों में धूल झोंककर ये संस्थाएं मोटी फीस वसूलती हैं, लेकिन बदले में मरीजों को न तो पर्याप्त भोजन मिलता है, न ही सही इलाज या परामर्श। कई केंद्रों में प्रशिक्षित डॉक्टरों और मनोवैज्ञानिकों की भी भारी कमी है, जिससे इलाज प्रक्रिया अधूरी और असुरक्षित हो जाती है।
अमानवीय व्यवहार
इन केंद्रों में मरीजों के साथ अमानवीय व्यवहार की घटनाएं आम होती जा रही हैं। कई मरीजों ने बताया कि उन्हें जबरन बांधकर रखा जाता है, शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है और मानसिक रूप से अपमानित किया जाता है। पारिवारिक सदस्यों को अंदर की वास्तविक स्थिति से अनजान रखा जाता है, और जब भी वे मिलने आते हैं, तब मरीजों को मजबूर किया जाता है कि सब कुछ ठीक है कहें।
प्रशासन पर सवालिया निशान
इस पूरे खेल में स्थानीय प्रशासन और पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठते हैं। अगर ये अवैध केंद्र इतने वर्षों से चल रहे हैं, तो यह साफ है कि उन्हें कहीं न कहीं से संरक्षण प्राप्त है। कई केंद्रों में तो पुलिस कार्रवाई के बाद भी कुछ ही दिनों में फिर से संचालन शुरू कर दिया जाता है।
पीड़ित के लिए विकल्प सीमित
समस्या का एक बड़ा कारण यह भी है कि नशे की लत से जूझ रहे लोगों के परिवारों के पास विकल्प सीमित होते हैं। मजबूरी में वे किसी भी केंद्र में अपने परिजन को भर्ती करवा देते हैं, और फिर शोषण का यह चक्र शुरू हो जाता है।
सख्त कदम आवश्यक
समाधान के लिए जरूरी है कि सरकार और प्रशासन इस दिशा में सख्त कदम उठाए। हर नशा मुक्ति केंद्र का पंजीकरण अनिवार्य किया जाए, समय-समय पर निगरानी हो, और मरीजों की गोपनीय रिपोर्टिंग की सुविधा उपलब्ध कराई जाए। साथ ही, ऐसे केंद्रों में कार्यरत कर्मचारियों को उचित प्रशिक्षण दिया जाना भी अनिवार्य होना चाहिए।
ईमानदार प्रयास जरूरी
नशा एक सामाजिक समस्या है, और उससे लड़ने के लिए ईमानदार प्रयास की जरूरत है, न कि शोषण के ऐसे काले धंधे की। जब तक इन अवैध नशा मुक्ति केंद्रों पर लगाम नहीं लगाई जाती, तब तक यह समस्या और विकराल होती जाएगी। नशा मुक्ति केंद्रों की दुर्दशा केवल मरीजों के नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए चिंता का विषय है। शासन-प्रशासन को चाहिए कि वो इन केंद्रों पर सख्त कार्रवाई करें, ताकि ये अपने मूल उद्देश्य – 'जीवन को पुनः पटरी पर लाना' – को सही मायनों में पूरा कर सकें।