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पलायन के पोस्टर
गाज़ियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
गाज़ियाबाद के लोनी क्षेत्र के वार्ड नंबर 41 में हालात दिन-प्रतिदिन बद से बदतर होते जा रहे हैं। क्षेत्र की बिगड़ती सफाई व्यवस्था, अवैध फैक्ट्रियों की भरमार और नागरिक सुविधाओं के अभाव ने स्थानीय निवासियों का जीवन दुश्वार कर दिया है। हालात इस हद तक बिगड़ चुके हैं कि कई परिवारों ने अपने मकानों के बाहर “पलायन को मजबूर” जैसे चेतावनी भरे पोस्टर चिपका दिए हैं, जो क्षेत्र की त्रासद स्थिति की सच्चाई बयां करते हैं।
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पार्षद हुआ परेशान
स्थानीय पार्षद अंकुश जैन मिंकू ने इस गंभीर स्थिति को लेकर उपजिलाधिकारी (एसडीएम) लोनी को एक विस्तृत और संवेदनशील पत्र सौंपा है। उन्होंने प्रशासन का ध्यान उन समस्याओं की ओर खींचा है जो वर्षों से अनदेखी की जा रही हैं। पत्र में उल्लेख किया गया है कि अवैध फैक्ट्रियाँ न केवल क्षेत्र की शांति को भंग कर रही हैं, बल्कि पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा बन चुकी हैं। इन फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआँ और कचरा क्षेत्रवासियों को बीमार कर रहा है।सफाई व्यवस्था की बदहाली ने हालात और बिगाड़ दिए हैं। कूड़े के ढेर, नालियों की गंदगी और नियमित सफाई की अनुपस्थिति ने क्षेत्र को बदबूदार और रोगग्रस्त बना दिया है। पार्षद जैन ने प्रशासन से अपील की है कि सफाई व्यवस्था की तत्काल बहाली हो, ताकि नागरिकों को राहत मिल सके।
नगर पालिका पर लगाया आरोप
उन्होंने यह भी कहा कि नगर पालिका को नियमित निरीक्षण और निगरानी सुनिश्चित करनी चाहिए, ताकि समस्याओं का समाधान समय पर हो सके और कोई नया संकट न खड़ा हो। उन्होंने अवैध गतिविधियों की जांच और दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की माँग की है। वार्डवासियों का कहना है कि वे अपनी समस्याओं को लेकर कई बार संबंधित अधिकारियों को अवगत करा चुके हैं, परंतु अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इसके चलते लोगों में गहरा असंतोष और रोष व्याप्त है। “पलायन को मजबूर” जैसे पोस्टर केवल प्रतीक नहीं, बल्कि क्षेत्र की सच्चाई हैं, जो प्रशासन को उसकी जिम्मेदारी का एहसास दिलाने का प्रयास कर रहे हैं।
उप जिलाधिकारी से की शिकायत
पार्षद अंकुश जैन ने विश्वास जताया है कि उपजिलाधिकारी इस मुद्दे को गंभीरता से लेंगे और शीघ्र ही आवश्यक कदम उठाएंगे। उनका मानना है कि यदि अब भी प्रशासन ने पहल नहीं की, तो जन आक्रोश और आंदोलन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।यह स्थिति केवल वार्ड 41 की नहीं, बल्कि शहरी प्रशासन और स्थानीय निकायों की जवाबदेही पर भी प्रश्नचिह्न खड़े करती है। अगर समय रहते प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई, तो यह समस्या एक बड़े सामाजिक संकट का रूप ले सकती है।