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फाइल फोटो
गाजियाबाद,वाईबीएन संवाददाता
जनपद गाजियाबाद में शिक्षा विभाग ने एक बड़ा फैसला लेते हुए 62 सरकारी स्कूलों को या तो बंद करने या फिर उनका नजदीकी स्कूलों में विलय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस निर्णय के पीछे मुख्य कारण है इन स्कूलों में छात्रों की लगातार घटती संख्या। कुछ सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहां मात्र 10 से 20 छात्र ही पंजीकृत हैं, जिससे स्कूल संचालन के लिए आवश्यक संसाधनों और शिक्षकों की तैनाती भी तर्कसंगत नहीं रह गई है।शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार, इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या इतने न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुकी है कि भवन और शिक्षक संसाधन का भारी दुरुपयोग हो रहा है। विभाग का मानना है कि नजदीकी स्कूलों में इन स्कूलों का विलय करने से न सिर्फ संसाधनों का समुचित उपयोग होगा, बल्कि छात्रों को बेहतर शैक्षणिक माहौल भी मिल सकेगा।
स्कूलों का दबदबा
दूसरी ओर, गाजियाबाद में निजी स्कूलों की संख्या में तेजी से वृद्धि देखी जा रही है। डीपीएस (दिल्ली पब्लिक स्कूल) फ्रेंचाइजी के चार, डीडीपीएस ( देहरादून पब्लिक स्कूल) के तीन और जीडी गोयंका के भी तीन स्कूल जिले में खुल चुके हैं। ये सभी स्कूल अत्याधुनिक सुविधाओं, स्मार्ट क्लासरूम, इंग्लिश मीडियम शिक्षा और आकर्षक कैंपस के कारण अभिभावकों के बीच बेहद लोकप्रिय हो चुके हैं। इनमें प्रवेश के लिए प्रतिस्पर्धा तेज है और फीस संरचना अपेक्षाकृत ऊंची होने के बावजूद अभिभावक इन्हें प्राथमिकता दे रहे हैं।इस स्थिति से साफ जाहिर होता है कि सरकारी स्कूलों की गिरती गुणवत्ता और प्रबंधन की उदासीनता के कारण समाज का विश्वास इन पर से उठ चुका है। कई सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी, पढ़ाई की गिरती गुणवत्ता, नियमित शिक्षक अनुपस्थिति और बच्चों में शैक्षणिक रुचि की कमी प्रमुख कारण बने हैं, जिससे वहां छात्र संख्या लगातार घट रही है।
गर्त मे सरकारी स्कूल
इसके विपरीत, निजी स्कूल न सिर्फ बच्चों को तकनीकी रूप से सुसज्जित शिक्षा दे रहे हैं बल्कि उनकी अन्य प्रतिभाओं को भी निखारने पर जोर देते हैं। यही वजह है कि मध्यम वर्गीय और निम्न आय वर्ग के परिवार भी निजी स्कूलों को प्राथमिकता दे रहे हैं, भले ही उन्हें इसके लिए अतिरिक्त आर्थिक बोझ उठाना पड़े।शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सरकारी स्कूलों को फिर से बच्चों और अभिभावकों का भरोसा जीतना है तो शिक्षा के स्तर को सुधरना होगा, अधोसंरचना को मजबूत करना होगा और अध्यापन में गुणवत्ता लानी होगी। वरना वह दिन दूर नहीं जब सरकारी स्कूल केवल कागजों में ही रह जाएंगे।