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फाइल फोटो
गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
राजनीति इन दिनों नई करवट लेती नजर आ रही है। जैसे-जैसे चुनाव की आहट सुनाई देने लगी है, वैसे-वैसे लंबे समय से जनता की समस्याओं से दूर रहने वाले कई नेता अचानक ‘हमदर्द’ बनकर सामने आ गए हैं। गलियों में महीनों से न दिखने वाले चेहरे अब रोजाना मोहल्लों की चौपालों और सामाजिक सभाओं में सक्रिय दिखाई दे रहे हैं।
जातीय समीकरण
स्थानीय स्तर पर वैश्य, ब्राह्मण, जाट, दलित और पंजाबी समाज में राजनीतिक खींचतान तेज हो गई है। हर समाज में अपने-अपने प्रतिनिधि नेताओं को आगे बढ़ाने की कोशिशें हो रही हैं। कहीं बैठकें हो रही हैं, तो कहीं धार्मिक स्थलों पर जाकर दावेदार अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। चुनावी माहौल में चाय-नाश्ते की महफिलें सज रही हैं और बड़े नेताओं के घरों पर समर्थकों का जमावड़ा बढ़ गया है।लोगों का कहना है कि यह सब नया नहीं है। चुनाव से पहले हर बार नेता जनता का सेवक बनकर सामने आते हैं, लेकिन जीत के बाद वही चेहरे गायब हो जाते हैं। बिजली, पानी, सड़क और सफाई जैसी बुनियादी समस्याओं पर चुनाव से पहले तो बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं लेकिन परिणामस्वरूप जनता को मायूसी ही मिलती है। इस बार भी वही चेहरों का पुराना खेल दोहराया जा रहा है।
कई दावेदार
सूत्रों के मुताबिक भाजपा सहित विभिन्न राजनीतिक दलों में टिकट की होड़ शुरू हो चुकी है। कई दावेदार अपने समाज विशेष का समर्थन पाने के लिए नए-नए दांव खेल रहे हैं। कहीं ब्राह्मण महासभाओं में नेताओं की भीड़ है तो कहीं जाट और दलित समाज के बड़े घरानों पर राजनीतिक दरबार लग रहा है। वैश्य और पंजाबी समाज में भी टिकट को लेकर जोर-आजमाइश तेज है।चुनावी रणनीति के तहत नेताओं की कोशिश है कि समाज विशेष को साधकर टिकट के लिए दबाव बनाया जाए। यही कारण है कि मंदिरों, गुरुद्वारों और धार्मिक कार्यक्रमों में नेताओं की अचानक मौजूदगी बढ़ गई है। सोशल मीडिया पर भी प्रचार अभियान तेज हो गया है।
लम्बी लाइन
जनता हालांकि अब ज्यादा जागरूक हो चुकी है। वह देख रही है कि कौन नेता वास्तव में क्षेत्र की समस्याओं को हल करता है और कौन सिर्फ चुनावी मौसम में वादों की राजनीति करता है। जनता की यह सजगता इस बार चुनाव में निर्णायक साबित हो सकती है।गाजियाबाद की गलियों से लेकर समाजिक संगठनों तक हर जगह एक ही चर्चा है – कौन बनेगा उम्मीदवार और किसे मिलेगा टिकट? यही सवाल इस चुनावी माहौल में सबसे अहम बन गया है।