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Encounter: गैंगस्टर बलराम ठाकुर का अंतिम संस्कार, उमड़ी भारी भीड़

पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे गए 50 हजार रुपये के इनामी गैंगस्टर बलराम ठाकुर का अंतिम संस्कार रविवार को उसके पैतृक गांव बुलंदशहर जिले.........

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Syed Ali Mehndi
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गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता 

पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे गए 50 हजार रुपये के इनामी गैंगस्टर बलराम ठाकुर का अंतिम संस्कार रविवार को उसके पैतृक गांव बुलंदशहर जिले के जहांगीराबाद में किया गया। अंतिम संस्कार के दौरान हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी और वातावरण गगनभेदी नारों से गूंज उठा। भीड़ ने “हमारा ठाकुर कैसा हो, बलराम ठाकुर जैसा हो” और “बलराम ठाकुर अमर रहे” जैसे नारे लगाए।

कुख्यात अपराधी 

गौरतलब है कि गाजियाबाद के वेव सिटी थाना क्षेत्र में स्वाट टीम और पुलिस की संयुक्त कार्रवाई में बलराम ठाकुर मुठभेड़ के दौरान गोली लगने से ढेर हो गया था। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार बलराम ठाकुर कुख्यात अपराधी था और उस पर हत्या, लूट, रंगदारी समेत कई संगीन मामले दर्ज थे। वह लंबे समय से फरार चल रहा था और उसकी गिरफ्तारी पर 50 हजार रुपये का इनाम घोषित किया गया था। हालांकि गांव में हुए अंतिम संस्कार ने एक अलग ही तस्वीर पेश की। भारी पुलिस बंदोबस्त के बावजूद लोग उमड़ते चले आए। बलराम के समर्थकों ने उसे नायक की तरह विदाई दी। महिलाओं, युवाओं और बुजुर्गों ने एक सुर में नारे लगाए। भीड़ इतनी अधिक थी कि पुलिस को हालात संभालने में खासी मशक्कत करनी पड़ी।

परिवार आक्रोशित

इस दौरान बलराम ठाकुर की मां ने बेहद भावुक बयान दिया। उन्होंने कहा “जिसने मेरे बेटे को आठ गोली मारी है, उसका सब भर-भर कर डूबेगा।” मां के इस बयान के बाद समर्थक और अधिक आक्रोशित हो गए और प्रशासन के खिलाफ भी नारेबाजी हुई।गांव में कई लोग बलराम ठाकुर को ‘अपना रक्षक’ मानते थे, जबकि पुलिस उसे समाज के लिए खतरा बताती रही। यही कारण है कि उसके अंतिम संस्कार पर दो तरह की तस्वीरें सामने आईं – एक तरफ परिवार और समर्थकों का दुख व गुस्सा, तो दूसरी तरफ पुलिस की सख्त निगरानी।

मुठभेड़ की हो रही है चर्चा

इस घटना ने फिर एक बार अपराध और राजनीति-सामाजिक समीकरणों पर बहस छेड़ दी है। जहां पुलिस इसे कानून और व्यवस्था की जीत मान रही है, वहीं बड़ी संख्या में लोग बलराम ठाकुर को ‘स्थानीय नायक’ के रूप में देख रहे हैं।गाजियाबाद से लेकर बुलंदशहर तक इस मुठभेड़ और अंतिम यात्रा की चर्चा जोरों पर है। सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर क्यों अपराधियों के मारे जाने के बाद भी उनके समर्थन में भीड़ उमड़ पड़ती है? यह केवल भय का असर है या फिर सामाजिक असंतोष की गूंज – इसका जवाब ढूंढना आसान नहीं है।

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