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शरबत वितरण
गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता
वैशाख पूर्णिमा, जिसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यही वह शुभ तिथि है जब महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण हुआ था। इस पुण्य अवसर पर सिविल कोर्ट राजनगर, गाजियाबाद में अधिवक्ताओं के सहयोग से महात्मा बुद्ध की 2559वीं जयंती श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाई गई। इस अवसर को विशेष बनाने के लिए एक सामूहिक आयोजन किया गया जिसमें सभी अधिवक्ताओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।
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शरबत वितरण
कार्यक्रम की शुरुआत बुद्ध वंदना और दीप प्रज्ज्वलन से हुई। इसके पश्चात अधिवक्ताओं द्वारा आमजन और अन्य न्यायालय कर्मियों के लिए मीठे शरबत का वितरण किया गया। गर्मी के मौसम में यह पहल न केवल एक सेवा भाव का उदाहरण थी, बल्कि यह महात्मा बुद्ध के करुणा और सेवा के सिद्धांतों का भी वास्तविक अनुपालन था।
महात्मा बुद्ध अनुकरणीय
इस अवसर पर अधिवक्ता हरेंद्र गौतम ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि महात्मा बुद्ध का जीवन आज भी मानवता के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। उनके द्वारा दिए गए चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग और मध्यम मार्ग जैसे सिद्धांत आज की जीवनशैली में भी अत्यंत प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा कि यदि हम बुद्ध के उपदेशों को अपने जीवन में आत्मसात करें, तो हम सामाजिक समरसता, शांति और करुणा से भरा एक सशक्त समाज बना सकते हैं।
अधिवक्ताओं ने लिया हिस्सा
इस कार्यक्रम में अधिवक्ताओं की भागीदारी उल्लेखनीय रही। रवी करण गौतम, संजीव निगम, सुरेश कुमार कर्दम, प्रवीण कुमार, सचिन कुमार, बृजलाल, मनोज कुमार (सदरपुर), गंगा शरण बबलू, संजय, रामेश्वर दत्त, हरीश वर्मा, कमलेश कुमारी, सुभाष चंद्र मुखी, सुनील कुमार आदि अधिवक्ताओं ने कार्यक्रम को सफल बनाने में विशेष भूमिका निभाई। सभी ने मिलकर इस आयोजन को सादगी और गरिमा के साथ संपन्न किया, जो महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं के अनुकूल था।
लिया संकल्प
इस अवसर पर सभी ने संकल्प लिया कि वे अपने जीवन में सत्य, अहिंसा, करुणा और धैर्य जैसे मूल्यों को अपनाकर समाज में शांति और सद्भाव फैलाने का कार्य करेंगे। बुद्ध पूर्णिमा का यह आयोजन न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व रखता है, बल्कि यह सामाजिक चेतना और मानवता के पुनर्स्थापन का भी एक प्रयास था।
सफल आयोजन
इस प्रकार, सिविल कोर्ट राजनगर, गाजियाबाद में मनाई गई बुद्ध पूर्णिमा न केवल एक पर्व, बल्कि आत्ममंथन और सद्गुणों को अपनाने का एक प्रेरक अवसर बनकर उभरी। महात्मा बुद्ध की शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रभावशाली हैं जितनी कि 2559 वर्ष पूर्व थीं और इस आयोजन ने उनके संदेश को जनमानस तक पहुंचाने का एक सराहनीय प्रयास किया।