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हिंदू संगठनों का कार्यक्रम
गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
गाजियाबाद में सर्व समाज के बैनर तले विभिन्न हिंदू संगठनों द्वारा धर्म स्वतंत्र्य विधेयक के समर्थन में एक विशाल यात्रा निकाली गई। यह यात्रा शहर के प्रमुख मार्गों से होते हुए नगर केंद्र तक पहुंची, जहां धर्माचार्यों और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने देश की सांस्कृतिक एकता और धार्मिक स्वतंत्रता के समर्थन में अपने विचार व्यक्त किए।
जबरदस्त आयोजन
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता, सर्व सेवा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित अशोक कृष्ण ठाकुर महाराज ने अपने संबोधन में कहा कि “धर्म स्वतंत्र्य विधेयक” भारत की सांस्कृतिक अखंडता की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक कदम है। उन्होंने कहा कि इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का एक सुनियोजित षड्यंत्र देश के भीतर चलाया जा रहा है, जिसका असली उद्देश्य हिंदू समाज में भ्रम फैलाना और अवैध धर्मांतरण को बढ़ावा देना है।महाराज जी ने कहा कि यह कानून किसी धर्म के विरोध में नहीं है, बल्कि भारत की मूल सांस्कृतिक धरोहर और आध्यात्मिक संतुलन की रक्षा के लिए लाया गया है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लेख करते हुए कहा कि “धर्म स्वातंत्र्य” का अर्थ केवल धर्म बदलने की स्वतंत्रता नहीं, बल्कि अपने धर्म में सुरक्षित रहने का अधिकार भी है। उन्होंने कहा कि छल, बल या प्रलोभन के माध्यम से धर्मांतरण करना व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन और समाज की अस्मिता पर आघात है।
एकजुट हुए संगठन
पंडित ठाकुर ने मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में लागू धर्म स्वातंत्र्य कानूनों को उदाहरण बताते हुए कहा कि ये कानून किसी की आस्था छीनते नहीं, बल्कि नागरिकों को दबावमुक्त धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं।डासना मंदिर से आए यति नरसिंहानंद गिरी महाराज ने भी इस अवसर पर समाज से आह्वान किया कि वे इस षड्यंत्र को पहचानें और धर्म-स्वातंत्र्य कानून का पुरजोर समर्थन करें। उन्होंने कहा कि यह कानून केवल हिंदू समाज का नहीं, बल्कि संपूर्ण भारतीय संस्कृति और राष्ट्र की रक्षा का प्रतीक है। इस अवसर पर शहर के अनेक प्रमुख समाजसेवी और संगठन पदाधिकारी जैसे आलोक गर्ग, सुभाष बजरंगी, संजीव बरनवाल, सत्येंद्र ठाकुर, अजय, सुनील कुमार आदि उपस्थित रहे। यात्रा के दौरान “भारत माता की जय” और “धर्म रक्षा ही राष्ट्र रक्षा” के नारों से वातावरण गूंज उठा।यह कार्यक्रम न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा, बल्कि समाज में बढ़ते सामंजस्य और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक बना।