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Event : हरियाली तीज पर श्री हरिनाम संकीर्तन: माँ गौरा की भक्ति से शिव की प्राप्ति

गुलमोहर एनक्लेव सोसायटी के श्री शिव बालाजी धाम मंदिर में इस बार हरियाली तीज का पर्व धार्मिक श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया गया। इस पावन अवसर पर इस्कॉन राजनगर द्वारा आयोजित श्री हरिनाम संकीर्तन कार्यक्रम में भक्तों ने गहरे आध्यात्मिक अनुभव साझा किए।

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Syed Ali Mehndi
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हरियाली तीज संकीर्तन

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गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता 

गुलमोहर एनक्लेव सोसायटी के श्री शिव बालाजी धाम मंदिर में इस बार हरियाली तीज का पर्व धार्मिक श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया गया। इस पावन अवसर पर इस्कॉन राजनगर द्वारा आयोजित श्री हरिनाम संकीर्तन कार्यक्रम में भक्तों ने गहरे आध्यात्मिक अनुभव साझा किए। मुख्य वक्ता ह्रदय परमात्मा दास ने माता पार्वती और भगवान शिव के पवित्र मिलन की कथा का वर्णन करते हुए बताया कि यह दिन उस तपस्या की याद दिलाता है जिसमें माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठिन तप किया था।

धार्मिक सांस्कृतिक महत्व

हरियाली तीज का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भारतीय परंपरा में विशेष स्थान रखता है। सुहागन महिलाएं इस दिन सोलह श्रृंगार कर व्रत रखती हैं और माता गौरी से अपने वैवाहिक जीवन की लंबी उम्र और सुखमय दांपत्य की कामना करती हैं। कार्यक्रम में वृक्षों, नदियों और जल देवता वरुण की भी पूजा की गई, जो पर्यावरण से हमारे जुड़ाव को दर्शाता है।श्री हरिनाम संकीर्तन की शुरुआत सुबह साढ़े 11 बजे की गई। इसके पश्चात ह्रदय परमात्मा दास द्वारा आध्यात्मिक चर्चा आयोजित की गई, जिसमें उन्होंने प्रकृति के तीन गुणों — सत्व, रज और तमस — की व्याख्या की और बताया कि इनसे ऊपर उठकर भक्ति के पथ पर कैसे चला जा सकता है। भक्तों ने अपने धार्मिक प्रश्न पूछे जिनके उत्तर ह्रदय दास ने सरल और प्रभावशाली भाषा में दिए।

 उत्साह से संकीर्तन

कार्यक्रम में कृष्ण नाम का संकीर्तन बड़े उल्लास से किया गया – "हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे" की माला का जाप पूरे वातावरण को भक्तिमय बना गया। अंत में सभी भक्तों को कृष्णम प्रसाद वितरित किया गया, जिससे कार्यक्रम पूर्णता की ओर बढ़ा। इस अवसर पर सुषमा गुप्ता, शुभ आनंद दास, जया वर्मा, गौरव वंसल, रवींद्र मिश्रा, कीर्ति लखेड़ा, राहुल त्यागी और राजेश कुमार जैसे कई श्रद्धालु उपस्थित रहे। श्री हरिनाम संकीर्तन न केवल धार्मिक जुड़ाव का माध्यम बना, बल्कि इसमें पर्यावरण और अध्यात्म का भी संतुलित समावेश देखने को मिला।

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