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बड़ी पुरानी कहावत है कि जब सईंया भले कोतवाल, तो डर काहे का। इसी कहावत की तर्ज पर नगर निगम के अफसरों की गाड़ियों को रिपेयर करने वाले शख्स ने पहले शहर के बीचों-बीच गैराज के नाम पर निगम की अरबों की जमीन पर कब्जा किया फिर कुछ भाजपाईयों से साठगांठ करके उसे बेच डाला। मजे की बात तो ये पुलिस में मामले की रिपोर्ट दर्ज होने के बावजूद उसके खिलाफ कोई एक्शन नहीं हुआ। उल्टा वो ही निगम के खिलाफ सिविल कोर्ट में चला गया। निगम ने कोई पैरवी नहीं की और मामला उसके पक्ष में एक्सपार्टी भी हो गया। ये सब निगम अफसरों की शह पर हुआ।
ये है मामला
शहर के बीचोंबीच पुराना गांव है बोंझा। इसी गांव की जमीन में पटेल नगर कालोनी विकसित हुई है जबकि इसके इर्द-गिर्द निगम के अधिकार क्षेत्र वाले कई पुराने और नये मुहल्ले भी आते हैं। इसी गांव की खसरा नंबर 278 की लगभग एक हेक्टेयर भूमि जिसकी कीमत आज बाजार भाव के मुताबिक अरबों में है उसी पर निगम के कुछ तत्कालीन अफसरों की साठगांठ से ये पूरा खेल हुआ है।
ऑटो रिपेयरिंग सेंटर का संचालक है मास्टरमाइंड
नगर निगम के अफसरों की गाड़ियों को रिपेयर करने वाला प्रदीप गुप्ता नाम का शख्स इस पूरी कारगुजारी का मास्टरमाइंड है। जानकारी के मुताबिक बोंझा के ही रहने वाले प्रदीप गुप्ता ने यहां अपनी टीन के शैड में एक गैराज खोली। उससे लगी निगम की बेशकीमती जमीन को निगम के तत्कालीन अफसरों की मदद से अपने कब्जे में लिया और गुपचुप तरीके से शहर के ही आज के कुछ नामचीन भाजपाईयों को बेच डाला। उस जमीन को खरीदने के कुछ दिन बाद ही उन लोगों ने कई गुना कीमत पर निगम की जमीन को बेचकर मोटा मुनाफा कमा लिया और निगम को अरबों की चपत लगा दी।
प्रदीप ने इन्हें बेची जमीन
प्रदीप गुप्ता ने जिन लोगों को जमीन बेची उनमें 15 फीसदी जमीन के मालिक प्रमोद छाबड़ा उर्फ राजू छाबड़ा को दर्शााया गया जबकि मनप्रीत सिंह कोहली को 20 फीसदी का मालिक, धर्मेंद्र खंडेलवाल को 15 फीसदी का मालिक, संजीव मदान को 25 फीसदी का मालिक, प्रीति मल्होत्रा को 15 फीसदी का मालिक और तरूण मदान को 10 फीसदी जमीन का मालिक बनाते हुए रजिस्ट्री कर दी। इस सरकारी जमीन की रजिस्ट्री होने के कुछ दिन बाद ही इन तमाम लोगों ने सरकारी जमीन को टुकड़ों में बेचना शुरू कर दिया। और देखते ही देखते जमीन मोटी कीमत पर बेच दी गई।
दिखावे को हुई FIR, मगर अपनी सरकार
बताते हैं कि अपनी गर्दन बचाने के लिए शिकायत होने पर तत्कालीन अधिकारियों ने एख एफआईआर तो दर्ज कराई मगर विपक्षियों को सिविल कोर्ट में वाद दायर करने का रास्ता भी बता दिया। मामले को लेकर एफआईआर के खिलाफ आरोपी कोर्ट चले गए। कोर्ट में निगम ने पैरवी नहीं की और मामला एक्सपार्टी हो गया। यानि पैरवी के अभाव में एकतरफा।
अब हो रही विधिक राय लेने की बात
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इस मामले में गाजियाबाद उद्योग व्यापार मंडल के अध्यक्ष अवधेश शर्मा की तरफ से आईजीआरएस के माध्यम से सीएम और नगर विपास मंत्रालय सहित तमाम जगहों पर शिकायत की गईं तो निगम की ओर से बताया गया है कि वो इस मामले में विधिक राय लेंगे। यानि यदि शिकायत न होती तो अरबों की जमीन का गोलमाल यूं ही दबा रहता।
मेयर साहिबा-कराईये माफियाओं पर एफआईआर
गौरतलब है कि पिछले कुछ वक्त से अचानक एक बार फिर महापौर सुनीता दयाल एक्शन मोड में हैं। अभी डूंडाहेड़ा में उनके द्वारा करोड़ों की जमीन को कब्जा मुक्त कराकर बीजेपी के ही एक नेता और पूर्व पार्षद बादल यादव पर एफआईआर कराई गई थी। देखना होगा कि शहर के बीचोंबीच अरबों कीमत वाली इस जमीन के मामले को महापौर कितनी गंभीरता से लेती हैं।