गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता।
अब समाज से कुरीतियों को दूर करने जैसे सामाजिक कार्य भी कमाई का जरिया बन गए हैं। इसकी बानगी जिले में चल रहे नशा मुक्ति केंद्रों के रूप में सामने आई है। सरकारी रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि जिले में कुल 83 नशा मुक्ति केंद्र चल रहे हैं। इनमें से मात्र छह रजिस्टर्ड हैं यानि वैध हैं जबकि बाकी 77 बिना रजिस्ट्रेशन फर्जी तरीके से संचालित किए जा रहे हैं। जाहिर है कि इनमें नशा मुक्ति केंद्रों का संचालन कितना मानकों के अनुरूप हो रहा होगा ये बखूबी समझा जा सकता है।
सरकारी छापेमारी में भी हो चुका है खुलासा
गौरतलब है कि पिछले दिनों जिले के स्वास्थ्य विभाग की तरफ से लोनी और साहिबाबाद के कई इसी तरह के अवैध रूप से संचालित नशा मुक्ति केंद्रों पर छापेमारी की गई थी। इस छापेमारी के दौरान इन केंद्रों का संचालन करने के नियमों की खुली अनदेखी की जा रही थी। खुलासा हुआ था कि जरूरी मानकों का भी पालन नहीं किया जा रहा था।
नशा मुक्ति केंद्र संचालन के अनिवार्य नियम
-नशा मुक्ति केंद्र में मरीज़ को कमरे में बंधक नहीं रखा जा सकता।
-मरीज़ को चिकित्सीय परामर्श के बाद ही केंद्र में रखा और डिस्चार्ज किया जाना चाहिए।
-केंद्र में फ़ीस, ठहरने, और खाने का मेन्यू प्रदर्शित करना होता है।
-मरीज़ों के इलाज के लिए मनोचिकित्सक और चिकित्सक रखना होता है।
-नशा मुक्ति केंद्र में निःशुल्क दवाएं, उपचार, और ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाएं दी जाती हैं।
-केंद्र में मनोरंजन की गतिविधियां भी आयोजित की जाती हैं।
-पुरुष और महिलाओं के लिए अलग-अलग आवासीय व्यवस्था होती है।
-स्वरोज़गार के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए जाने चाहिए।
नशा मुक्ति केंद्रों में इलाज की अवधि
नशा मुक्ति केंद्र में किसी व्यक्ति को कितना समय बिताना पड़ेगा, यह उसकी लत की गंभीरता पर निर्भर करता है। आमतौर पर उपचार की अवधि 30 दिन, 60 दिन, या 90 दिन तक हो सकती है। लेकिन इसे बढाने को लेकर चिकित्सकों और परिवारजनों की परामर्श बेहद जरूरी है।
रोगियों से व्यवहार
नशा मुक्ति केंद्रों में इलाज के दौरान मरीज़ों को करुणा, समर्थन, और एक उज्जवल भविष्य की आशा भी दी जाती है। इन सभी बातों का ध्यान रखते हुए उन पर सख्ती या किसी भी तरह का टॉर्चर करना कानूनी अपराध है।
स्वास्थ्य विभाग ने जारी किए नोटिस
मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ. आर.के.गुप्ता के मुताबिक नशा मुक्ति केंद्रों में तय नियमों का पाल करने के साथ-साथ हर साल इनका रजिस्ट्रेशन कराना भी अनिवार्य है। मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम 2017 की धारा-65 के तहत सरकारी औऱ निजी संस्थानों को राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण उत्तर प्रदेश लखनऊ में रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है। लेकिन अधिकांश नशा मुक्ति केंद्रों ने इसका ख्याल नहीं रखा है। इसी के चलते नोटिस जारी किए गए हैं।
ये हैं हालात
हालाकि स्वास्थ्य विभाग की जांच में भी और छापेमारी में भी ये कई मर्तबा सामने आ चुका है कि जिले में चल रहे नशा मुक्ति केंद्रों में अनिवार्य नियमों का भी पालन नहीं किया जा रहा। यहां तक कि तय मानकों के मुताबिक बगैर चिकित्सक, फार्मेसिस्ट और वार्ड ब्वॉय के ही इनका संचालन हो रहा है। जबकि रोगियों को बंधक बनाकर रखने के साथ-साथ उन्हें तरह तरह से टॉर्चर भी किया जाता है। इतना ही नहीं मूलभूत सुविधाएं तक नहीं दी जाती जबकि परिवार वालों से मनमाफिक रकम वसूली जाती है।