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Free grain scheme : भ्रष्टाचार की है कहानी, गरीबों का हक डकार रहे राशन माफिया

गाज़ियाबाद में मुफ्त राशन वितरण योजना गरीबों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, लेकिन इसी योजना को कुछ अनाज माफिया और भ्रष्ट डीलर मिलकर एक अभिशाप में तब्दील कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार,

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Syed Ali Mehndi
फाइल फोटो

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गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता 

गाज़ियाबाद में मुफ्त राशन वितरण योजना गरीबों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, लेकिन इसी योजना को कुछ अनाज माफिया और भ्रष्ट डीलर मिलकर एक अभिशाप में तब्दील कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, जिले में दो दर्जन से अधिक राशन डीलर और उनके सहयोगी राशन की घटौली कर रहे हैं और सरकारी अनाज को खुले बाजार में बेच रहे हैं। इससे उन गरीब परिवारों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, जो हफ्तों-महीनों तक मुफ्त राशन का इंतजार करते हैं।

निचले स्तर पर भ्रष्टाचार

सरकार द्वारा जारी किए गए मुफ्त राशन को पात्र लोगों तक पहुंचाने के लिए पूरी व्यवस्था की गई है, लेकिन धरातल पर इसका दूसरा ही रूप देखने को मिल रहा है। कई राशन डीलर कार्डधारकों के हिस्से का अनाज या तो घटाकर दे रहे हैं या फिर उन्हें बिना राशन दिए यह कहकर लौटा देते हैं कि "राशन आया ही नहीं"। बाद में वही अनाज बाजार में ऊंचे दामों पर बिकता है।

वर्षों से घोटाला

स्थानीय सूत्रों की मानें तो यह घोटाला वर्षों से चल रहा है, लेकिन हाल ही में इसकी जानकारी जिला प्रशासन और खाद्य आपूर्ति विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंची है। कुछ क्षेत्रों में गुप्त निगरानी की गई, जिसके बाद इस गोरखधंधे की पुष्टि हुई। अब प्रशासन की ओर से सख्त कार्रवाई की तैयारी की जा रही है। यह उम्मीद की जा रही है कि दोषी राशन डीलरों पर जल्द ही शिकंजा कसा जाएगा।

 कई बार हुई शिकायत

कई लाभार्थियों ने भी शिकायत दर्ज करवाई है कि उन्हें पूरे महीने का राशन नहीं मिलता या फिर बार-बार चक्कर लगाने के बाद ही कुछ किलो अनाज दिया जाता है। राशन कार्डधारियों का कहना है कि उनके अंगूठे के निशान लगवाने के बाद भी उन्हें पर्ची पर पूरा राशन दर्ज नहीं किया जाता। इससे साफ है कि ई-पॉस मशीन का दुरुपयोग भी हो रहा है। इस पूरे मामले में यह सवाल उठना लाजिमी है कि अगर सरकारी सिस्टम पारदर्शी है, तो इतने समय तक घटौली कैसे होती रही? क्या स्थानीय प्रशासन की आंखें बंद थीं या फिर मिलीभगत का मामला है?

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कड़ी कार्रवाई आवश्यक

जरूरत है कि प्रशासन न केवल दोषी डीलरों पर कार्रवाई करे, बल्कि इस प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और जनसहभागिता पर आधारित बनाए। हर वितरण केंद्र पर सीसीटीवी कैमरे हों, लाभार्थियों को वितरण की एसएमएस जानकारी दी जाए और हर महीने सोशल ऑडिट हो। गरीबों का हक छीनने वालों को कानून के शिकंजे में लाकर ही यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि सरकार की योजनाओं का लाभ सही मायने में उन तक पहुंचे, जिनके लिए वे बनाई गई हैं। जब तक ऐसे माफियाओं पर कड़ी कार्रवाई नहीं होती, तब तक "घटौली की कहानी" यूं ही चलती रहेगी।

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