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ये जिला गाजियाबाद है। यहां फैसले लेना भले ही आसान लगता हो। मगर, उन्हें लागू कराना बेहद मुश्किल। जो अफसर और जनप्रतिनिधि जितनी जल्दी ये समझ जाते हैं, वो उतनी जल्दी यहां के हवा-पानी में खुद को कंफर्ट महसूस करने लगते हैं। लेकिन जो इसे नहीं समझ पाते उन्हें फैसले लेने के बाद उन पर अमल कराना मुसीबत का सबब बन जाता है। बात हो रही है निगम द्वारा बढ़ाए गए टैक्स की। चौतरफा विरोध के बीच मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया है, लिहाजा अफसर हों या जनप्रतिनिधि अपने को बचाने के लिए बेकफुट पर आने लगे हैं। जाहिर है कि उन्हें भी एहसास हो रहा है कि जो किया गलत किया।
नगर आयुक्त ने बुलाई खास मीडियाकर्मियों की बैठक
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सूत्रों के मुताबिक नगर आयुक्त ने सोमवार को कुछ खास मीडियाकर्मियों की एक बैठक अपने आवास पर बुलाई। बैठक में अपने कुछ खास मीडियाकर्मियों को ब्रिफिंग देने के साथ बताने और जताने का प्रयास किया कि जो भी टैक्स बढ़ोतरी का फैसला था, वो सिर्फ उनका नहीं था। बल्कि इसमें निगम पार्षदों और महापौर की भी स्वीकृति थी। नगर आयुक्त ने मीडिया वालों के जरिये ये भी एहसास कराने की कोशिश की कि जिस बढ़ोतरी को चार से पांच गुना तक बताया जा रहा है वो महज कुछ फीसदी की है। जाहिर है कि नगर आयुक्त को लगने लगा है कि मामला बड़े विवाद की वजह और चौतरफा विरोध का कारण बन सकता है।
शहर विधायक भी जता चुके हैं आपत्ति
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गौरतलब है कि नगर निगम के टैक्स बढ़ोतरी के इस फैसले के खिलाफ बीजेपी के शहर विधायक संजीव शर्मा पहले ही आपत्ति जता चुके हैं। हालाकि संजीव महानगर अध्यक्ष पद पर रहते वक्त भी निगम की इस कोशिश का बीजेपी पार्षदों की मदद से खुद विरोध कर चुके थे। बावजूद इसके टैक्स बढ़ोतरी लागू होने के बाद विधायक ने यंग भारत न्यूज से बातचीत में संजीव शर्मा ने निगम अफसरों को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की नसीहत देते हुए टैक्स की बढ़ोतरी को गलत बताया था।
आरडब्लूए-व्यापारी भी कर चुके हैं विरोध
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इस टैक्स वसूली का जिले की तमाम आरडब्लूए पहले ही से विरोध कर चुकी हैं। वो तीन चरण में विरोध की रणनीति भी बना चुकी हैं। उधर, कई व्यापारी संगठनों की ओर से भी इस मामले पर विरोध करने और बढ़ा टैक्स नहीं जमा कराने की बात कही जा चुकी है। उधर, कई पार्षद और अन्य जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ राजनैतिक दल भी इस टैक्स बढ़ोतरी को मनमानी वसूली करार दे चुके हैं।
HC पहुंचे BJP के 3 पूर्व पार्षद
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इस मामले में सबसे खास और टैक्स बढ़ाने का फैसला लेने वालों के लिए सबसे ज्यादा मुसीबत ये है कि निगम के 3 पूर्व और सीनियर पार्षद मामला हाईकोर्ट में ले जा चुके हैं। इनमें कई बार के पार्षद रहे राजेंद्र त्यागी, अनिल स्वामी और हिमांशु हैं। ये तीनों ही बीजेपी के पार्षद रहे हैं और कई बार अपने-अपने वार्डों की जनता का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। जाहिर है कि इन लोगों को अन्य पार्षदों से ज्यादा निगम एक्ट की जानकारी भी है। इन पार्षदों के एक साथ विरोध में आने से टैक्स बढ़ोतरी का फैसला लेने और उसका समर्थन करने वाले लोगों के माथे पर बल पड़ गए हैं।
AC में भी छूटने लगे हैं पसीने
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निगम के इस फैसले में कुछ बीजेपी और गैरबीजेपी पार्षदों ने अपने कुछ निजी स्वार्थों के चलते समर्थन किया है। कुछ और जनप्रतिनिधि भी हैं जो अफसरों के इस फैसले पर फिलहाल भी चुप्पी साधे हैं। मगर, सभी को पता है कि 2027 में फिर चुनाव होने हैं और यदि ये फैसला वापस नहीं लिया गया और टैक्स बढ़ोतरी के फैसले पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया तो बड़ा नुकसान तय है। लिहाजा अफसरों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक के एसी में बैठकर भी पसीने छूटने लगे हैं।