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गाजियाबाद में नये पुलिस कमिश्नर के रूप में जे. रविन्दर गौड की तैनाती के वक्त जिले में कानून व्यवस्था की हालत ये थी कि लगभग हर दिन जिले के तीनों जोन में करीब एक दर्ज वाहन चोरी और मोबाइल-चेन स्नेचिंग की वारदातें हो रही थीं। आलम ये था कि राजनगर जैसे वीआईपी क्षेत्र जिसमें जिलाधिकारी, एडीसीपी समेत तमाम अफसरों के कार्यालयों के साथ-साथ कचहरी परिसर से हर दिन वाहन चोरी आम था। मगर, नये पुलिस कमिश्नर की तैनाती के बाद जैसे ही जिले में पुलिस ने ऑपरेशन लंगड़ा तेज करके लोकल अपराधियों को निशाने पर लेना शुरू किया है अचानक इन वारदातों ने न सिर्फ कमी दिखाई देने लगी है, बल्कि बदमाशों में पुलिस का खौफ भी नजर आने लगा है। इतिहास गवाह है कि ऐसा खौफ करीब ढाई दशक के बाद देखने को मिल रहा है।
हर दिन एनकाउंटर से खौफ
पिछले दो हफ्ते से गाजियाबाद के तीनों जोन की पुलिस अचानक बदली-बदली दिख रही है। लगभग हर दिन कम से कम एक पुलिस मुठभेड़ हो रही है। खास बात ये है कि मुठभेड़ में गोली खाने वाले और गिरफ्तार होने वाले अधिकतर बदमाश वो हैं जो या तो स्थानीय हैं। या फिर स्थानीय अपराधिक वारदातों में शामिल रहे हैं। लोकल क्रिमिनल्स पर पुलिस का ये अटेकिंग एक्शन वाला नुक्ता असर दिखाने लगा है। नतीजतन वाहन चोरी, चेन और मोबाइल स्नेचिंग की वारदातों में अचानक कमी देखने को मिल रही है।
एनकाउंटर्स का लेखा-जोखा
पुलिस कमिश्नर जे रविन्दर गौड के चार्ज लेने के बाद से अभी तक सिटी, देहात और ट्रांस हिंडन जोन में लगभग चार दर्जन के करीब ऐसी पुलिस मुठभेड़ हो चुकी हैं जिनमें लोकल बदमाशों की न सिर्फ गिरफ्तारियां हुई हैं, बल्कि उनके पांव में गोली लगने से ऑपरेशन लंगड़ा का खौफ भी पैदा हुआ है। इस अभियान में तेजी एडीसीपी के रूप में आलोक प्रियदर्शी के तैनात होने के बाद कुछ और ज्यादा आई है।
एडीसीपी का पुराना अनुभव कारगर साबित हो रहा
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दरअसल, एडीसीपी के रूप में गाजियाबाद में तैनात हुए आलोक प्रियदर्शी गाजियाबाद में डीसीपी के रूप में तैनात रह चुके हैं। आलोक प्रियदर्शी की तैनाती उस दौर में गाजियाबाद में हुई थी जबकि हापुड़ जिला भी गाजियाबाद का ही हिस्सा होता था। उस दौर में भी बदमाशों को मार गिराने और अपराधों की रोकथाम के लिए पुलिस ने इसी तरह का आक्रामक रूख अपनाया था। उसी दौर में राकेश हसनपुरिया, रविंद्र भूरा और बंटी गूर्जर जैसे नामचीन अपराधियों को पुलिस ने मारकर कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने और अपराधियों में खाकी का खौफ पैदा किया था।
डीजीपी प्रशांत कुमार का कार्यकाल याद दिलाया
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नये पुलिस कमिश्नर और एडीसीपी आलोक प्रियदर्शी के तैनात होने के बाद से जिस तरह से पुलिस जिले में आक्रामक दिख रही है ऐसा लग रहा है कि मानों 2000 से 2002 का दौर लौट आया हो। ये वो दौर था जब गाजियाबाद में पुलिस कप्तान यानि एसएसपी के रूप में सूबे के वर्तमान डीजीपी प्रशांत कुमार की तैनाती थी। उस दौर में सैकड़ों की तादात में बदमाशों को पुलिस ने मार गिराया था। उस दौर में भी स्थानीय अपराधी ही पुलिस के निशाने पर थे। वो दौर था भाड़े पर हत्याएं करने, फिरौती के लिए अपहरण और डकैती-लूट की ताबड़तोड़ वारदातों और गैंगवार का। पुलिस ने जब सीधे अपराधियों को ललकारना और उन्हें जहन्नुम पहुंचाना शुरू किया तो कानून का न सिर्फ राज हुआ बल्कि खाकी का इकबाल भी बुलंद हुआ और अपराधियों के होंसले भी पस्त हुए।