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Ghaziabad News -संविदा बिजली कर्मियों की हड़ताल, लेकिन सवाल बरकरार - क्यों उठाया गया यह कदम?

गाजियाबाद में संविदा बिजली कर्मचारियों की हड़ताल उनके लंबे समय से अनसुने असंतोष का परिणाम है। छंटनी, बकाया वेतन, और कार्यस्थितियों में सुधार की मांगें कर्मचारियों को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर रही हैं

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Kapil Mehra
India Pakistan tension Electricity workers postponed agitation

बिजली कर्मियों ने टाला आंदोलन

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गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता

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गाजियाबाद में उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन के संविदा कर्मचारियों की 20 मई 2025 से शुरू होने वाली 72 घंटे की प्रदेशव्यापी हड़ताल की तैयारियां पूरी हो चुकी थीं। पर मुख्य अभियंता ने साफ कर दिया था कि यदि हड़ताल कर जिले की विद्युत व्यवस्था को बाधित करना का लक्ष्य है तो विद्युत विभाग इस पर सख्त कार्रवाई करेगा। जिसके कारण गाजियाबाद में होने वाली हड़ताल का कोई असर नहीं दिखा 

जिला प्रशासन ने बिजली आपूर्ति को सुचारू रखने के लिए व्यापक इंतजाम किए हैं, लेकिन सवाल यह है कि आखिर संविदा बिजली कर्मचारी हड़ताल पर क्यों जा रहे हैं? उनकी मांगें और असंतोष के कारण क्या हैं? इस लेख में हम इस हड़ताल के पीछे के कारणों और इसके संभावित प्रभावों पर प्रकाश डालते हैं।

हड़ताल की पृष्ठभूमि

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संविदा बिजली कर्मचारियों ने उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन (यूपीपीसीएल) और इसकी सहयोगी कंपनियों के खिलाफ अपनी मांगों को लेकर लंबे समय से आंदोलन चलाया है। 15 मई 2025 को लखनऊ के शक्ति भवन पर करीब 10,000 संविदा कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया था, जिसमें गाजियाबाद के कर्मचारी भी शामिल थे।

इस प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सभी जिलाधिकारियों से स्थिति की रिपोर्ट मांगी, जिसके परिणामस्वरूप गाजियाबाद में जिलाधिकारी दीपक मीणा ने 19 मई को एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई। इस बैठक में विद्युत विभाग, संविदा एजेंसियों, गाजियाबाद विकास प्राधिकरण, नगर निगम, और अन्य विभागों के अधिकारियों ने हिस्सा लिया ताकि हड़ताल के दौरान बिजली आपूर्ति बाधित न हो।

हड़ताल के कारण

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छंटनी का विरोध:

कर्मचारी नेताओं का कहना है कि 55 वर्ष की आयु सीमा के आधार पर हजारों संविदा कर्मचारियों को नौकरी से हटाया जा चुका है, और अब 26,000 से अधिक कर्मचारियों की छंटनी की योजना बनाई जा रही है। गाजियाबाद में ही 218 संविदा कर्मचारियों को हटाने का निर्णय लिया गया है, जिसका स्थानीय कर्मचारियों ने कड़ा विरोध किया है।

बकाया वेतन भुगतान:

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कर्मचारियों का आरोप है कि उन्हें कई महीनों से वेतन नहीं मिला है। कुछ मामलों में, ठेकेदारों द्वारा पूरा वेतन नहीं दिया जा रहा, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो रही है।

समान कार्य के लिए समान वेतन:

संविदा कर्मचारी मांग कर रहे हैं कि उन्हें उनके कार्य के अनुरूप उचित वेतन दिया जाए। वर्तमान में, कई कर्मचारियों को न्यूनतम मजदूरी से भी कम वेतन मिल रहा है।

फेसियल अटेंडेंस की बाध्यता:

कर्मचारियों ने फेसियल अटेंडेंस सिस्टम को समाप्त करने की मांग की है, क्योंकि इसे वे अव्यवहारिक और अनावश्यक मानते हैं।

कैशलेस इलाज की सुविधा:

कार्य के दौरान घायल होने वाले कर्मचारियों के लिए कैशलेस इलाज की मांग भी प्रमुख है।

ईपीएफ घोटाले की जांच:

कर्मचारियों ने कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) में कथित घोटाले की जांच की मांग की है, जिसके कारण उनकी बचत पर संकट मंडरा रहा है।

पिछले अनुभव और प्रभाव

गाजियाबाद में 2023 में हुई संविदा कर्मचारियों की हड़ताल का व्यापक असर देखा गया था। उस दौरान 24 घंटे में 60 स्थानों पर फॉल्ट हुए, जिससे कई इलाकों में बिजली आपूर्ति ठप हो गई थी। बिजलीघरों पर ताले लगे थे, हेल्पलाइन नंबर काम नहीं कर रहे थे, और उपभोक्ताओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा था। इस बार भी ऐसी स्थिति की आशंका है, क्योंकि हड़ताल के दौरान बिजली बिल जमा करना, फॉल्ट ठीक करना, नए मीटर लगाना, और नए कनेक्शन देना जैसे कार्य प्रभावित हो सकते हैं।

सख्ती का रुख

जिलाधिकारी ने चेतावनी दी है कि हड़ताल को बढ़ावा देने वाले कर्मचारियों या अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जाएगी।

कर्मचारियों का पक्ष

उत्तर प्रदेश संविदा निविदा कर्मचारी संघ के नेताओं, जैसे देवेंद्र पांडेय, का कहना है कि प्रबंधन उनकी मांगों को लगातार अनसुना कर रहा है। उन्होंने 14 मई को पावर कॉरपोरेशन के साथ बातचीत की थी, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। कर्मचारियों का कहना है कि उनकी मांगें जायज हैं, और जब तक इन पर कार्रवाई नहीं होती, वे आंदोलन जारी रखेंगे।

आर्थिक प्रभाव

संविदा कर्मचारियों की हड़ताल न केवल बिजली आपूर्ति को प्रभावित करती है, बल्कि यह समाज के विभिन्न वर्गों, जैसे अस्पतालों, डेटा सेंटर्स, और घरेलू उपभोक्ताओं, पर भी गहरा असर डालती है। यह हड़ताल कर्मचारियों की आर्थिक तंगी, नौकरी की असुरक्षा, और प्रबंधन की उदासीनता को उजागर करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार और प्रबंधन को कर्मचारियों की मांगों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए ताकि ऐसी स्थिति से बचा जा सके।

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