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गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश का एक ऐसा शहर जो दिल्ली की चकाचौंध के ठीक बगल में बसा है, लेकिन अपनी अलग पहचान रखता है। ये शहर न केवल औद्योगिक और व्यावसायिक केंद्र है, बल्कि अपराध और सामाजिक समस्याओं से भी जूझता रहा है। पिछले कुछ सालों में, गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट ने अपराध पर लगाम कसने के लिए कई कड़े कदम उठाए, जिनमें से एक था सार्वजनिक स्थानों पर शराब पीने वालों के खिलाफ विशेष अभियान।
इस अभियान की कमान थी शहर के पहले पुलिस कमिश्नर अजय मिश्रा के हाथों में। लेकिन, अचानक उनके तबादले की खबर ने न केवल पुलिस महकमे को हिलाकर रख दिया, बल्कि उनके द्वारा शुरू किए गए इस विशेष अभियान को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया। आखिर क्या है इस तबादले और अभियान के रुकने की कहानी? चलिए, इस रहस्य को खोलते हैं, वो भी बिल्कुल हटकर अंदाज में!
गाजियाबाद का पहला 'सुपरकॉप'
2003 बैच के आईपीएस अधिकारी अजय मिश्रा को 2022 में गाजियाबाद का पहला पुलिस कमिश्नर नियुक्त किया गया था। एक पुलिस परिवार से ताल्लुक रखने वाले मिश्रा की छवि तेज-तर्रार और बेबाक अफसर की थी। उनके पिता भी यूपी पुलिस में अपनी सेवाएं दे चुके थे, और शायद यही वजह थी कि मिश्रा में कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करने का जुनून साफ दिखता था।
गाजियाबाद जैसे शहर में, जहां लूट, डकैती, साइबर क्राइम और सामाजिक बुराइयां रोज की चुनौती हैं, मिश्रा ने कमिश्नर बनते ही कई बड़े बदलाव किए। इनमें सबसे ज्यादा चर्चा में रहा उनका शराबियों के खिलाफ विशेष अभियान।
जिले को तीन जोन में रखा था
गाजियाबाद के तीनों जोन ट्रांस हिंडन, देहात, और सिटी जोन में सार्वजनिक स्थानों पर शराब पीने वालों के खिलाफ कड़ा एक्शन लिया गया। इस अभियान के तहत पुलिस ने रात के समय सघन चेकिंग शुरू की, और सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया गया। आंकड़े बताते हैं कि मार्च 2025 में एक तीन घंटे के अभियान में 624 लोग पकड़े गए, और अप्रैल की शुरुआत में 514 लोग हवालात पहुंचे।
मकसद साफ था शराब के नशे में होने वाले झगड़ों, छेड़छाड़, और हिंसक वारदातों पर रोक लगाना।लेकिन, 15 अप्रैल 2025 को एक खबर ने सबको चौंका दिया। अजय मिश्रा का तबादला कर दिया गया, और उनकी जगह आगरा के पुलिस कमिश्नर जे. रवींद्र गौड़ को गाजियाबाद का नया कमिश्नर बनाया गया। तबादले की यह खबर अपने आप में सामान्य हो सकती थी, क्योंकि मार्च-अप्रैल का महीना तबादलों का मौसम माना जाता है। लेकिन इस तबादले के पीछे की कहानी और इसके बाद शराबियों के खिलाफ अभियान का रुकना, कई सवाल खड़े करता है।
शराबियों पर अभियान क्यों ठप?
मिश्रा के तबादले के बाद गाजियाबाद पुलिस का वो जोश, जो शराबियों के खिलाफ अभियान में दिखता था, अचानक ठंडा पड़ गया। पिछले दो दिनों से पुलिस के आधिकारिक मीडिया ग्रुप्स में इस अभियान से जुड़ी कोई अपडेट नहीं आई। शाम होते ही शराब के ठेकों के आसपास शराबियों की भीड़ जमा होने लगी, और सार्वजनिक स्थानों पर शराब पीने की शिकायतें फिर से बढ़ने लगीं।
इसके पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं:
नए कमिश्नर का फोकस बदलना
जे. रवींद्र गौड़ ने 17 अप्रैल 2025 को गाजियाबाद के पुलिस कमिश्नर का चार्ज संभाला। एक नए अधिकारी के लिए प्राथमिकताएं बदलना स्वाभाविक है। हो सकता है कि गौड़ अभी शहर की दूसरी समस्याओं, जैसे साइबर क्राइम या संगठित अपराध, पर ज्यादा ध्यान दे रहे हों।
पुलिस का मनोबल
मिश्रा का तबादला स्थानीय विधायक के दबाव में हुआ या रुटीन ट्रांसफर जिससे पुलिस महकमे में एक तरह का डर या अनिश्चितता का माहौल हो सकता है। ऐसे में, पुलिसकर्मी शायद सख्त कार्रवाई से बच रहे हों, ताकि किसी नए विवाद में न फंसें।
स्थानीय दबाव और राजनीति
गाजियाबाद में शराब के ठेके और उनसे जुड़ा कारोबार हमेशा से विवादों में रहा है। कुछ लोग मानते हैं कि शराबियों के खिलाफ अभियान से स्थानीय कारोबारियों को नुकसान हो रहा था, और उनके दबाव में यह अभियान कमजोर पड़ गया।
प्रशासनिक ढील
तबादले के बाद नए कमिश्नर को सिस्टम को समझने और अपनी रणनीति लागू करने में समय लग सकता है। इस दौरान पुराने अभियानों में ढील बरती जा सकती है।
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शराबियों की वापसी शहर के लिए खतरा?
शराबियों के खिलाफ अभियान के रुकने का असर अब साफ दिखने लगा है। शाम होते ही गाजियाबाद के कई इलाकों में, खासकर लोनी, क्रॉसिंग रिपब्लिक, और नंदग्राम जैसे क्षेत्रों में, शराब के ठेकों के बाहर भीड़ जमा होने लगी है। नशे में धुत लोग राहगीरों को परेशान कर रहे हैं, और छोटे-मोटे झगड़े फिर से आम हो रहे हैं।
महिलाओं और बच्चों के लिए सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षित माहौल बनाए रखने का मिश्रा का सपना अब खतरे में दिख रहा है।पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी से अप्रैल 2025 तक इस अभियान के तहत हजारों लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई थी। लेकिन अब, जब यह अभियान रुका हुआ है, तो क्या गाजियाबाद फिर से उन पुरानी समस्याओं की चपेट में आ जाएगा, जिनसे मिश्रा ने शहर को निकालने की कोशिश की थी?
क्या कहते हैं लोग?
स्थानीय लोगों में इस मुद्दे को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया है। कुछ लोग मिश्रा के सख्त रवैये के समर्थक थे और मानते हैं कि उनके तबादले ने शहर की कानून-व्यवस्था को कमजोर किया है। एक स्थानीय निवासी, मयंक कहते हैं, मिश्रा साहब ने शराबियों को सबक सिखाया था।
अब फिर से ठेकों के बाहर हुड़दंग मच रहा है। नए कमिश्नर को जल्दी कुछ करना चाहिए।वहीं, कुछ लोग मानते हैं कि शराबियों पर कार्रवाई से ज्यादा जरूरी है अवैध शराब के कारोबार पर लगाम लगाना। एक दुकानदार ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, पुलिस छोटे-मोटे शराबियों को पकड़ती थी, लेकिन बड़े माफिया आज भी खुले में घूम रहे हैं।
तबादला या सियासत का खेल?
अजय मिश्रा का तबादला और शराबियों के खिलाफ अभियान का रुकना, गाजियाबाद की सियासत और प्रशासन के बीच की जटिल गुत्थी को उजागर करता है। यह कहानी केवल एक अधिकारी के तबादले की नहीं, बल्कि सत्ता, दबाव, और नीतियों के टकराव की है। मिश्रा ने गाजियाबाद को एक सुरक्षित और व्यवस्थित शहर बनाने की कोशिश की, लेकिन उनके तबादले ने उनके कई सपनों को अधूरा छोड़ दिया।अब गेंद जे. रवींद्र गौड़ के पाले में है।
क्या वे मिश्रा की विरासत को आगे बढ़ाएंगे, या गाजियाबाद के लिए कोई नया रास्ता चुनेंगे? यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन एक बात तय है गाजियाबाद की गलियों में शराबियों की वापसी ने फिर से सवाल उठा दिए हैं कि आखिर शहर की सुरक्षा और शांति की जिम्मेदारी किसके कंधों पर है?
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