गाजियाबाद, चीफ रिपोर्टर।
पुलिस कमिश्नर का घोषित दफ्तर, जिलाधिकारी कार्यालय, जिला जज यानि जिला न्यायालय का परिसर, सेल्स टेक्स का ऑफिस और बिजली विभाग के मुख्य अभियंता के दफ्तर समेत गाजियाबाद का कनॉट प्लेस कहा जाने वाला आरडीसी का इलाका। ये पूरा का पूरा क्षेत्र सुरक्षा के लिहाज से थाना कविनगर की पुलिस चौकी कचहरी(RDC)के अंतर्गत आते हैं। लेकिन इस पुलिस चौकी पर तैनात पुलिसकर्मियों को यहां सिटी एरिया में होने वाली सबसे ज्यादा वाहन चोरी की वारदातों से कोई सरोकार नहीं। पुलिस का रिकॉर्ड ही बताने को काफी है कि इस चौकी क्षेत्र में सबसे ज्यादा वाहन चोरी की वारदातें होती हैं। मगर, यहां तैनात पुलिसकर्मियों को इससे कोई सरोकार नहीं। बल्कि उन्हें सिर्फ गाजियाबादी कनॉट प्लेस से होने वाली अवैध वसूली से ही मतलब है। ये हम नहीं कह रहे, बल्कि ये कहना है पुलिसकर्मियों से परेशान कुछ आरडीसी के व्यापारी और कारोबारियों का। नये पुलिस कमिश्नर पुलिस की छवि के साथ-साथ क्राइम कंट्रोल पर भी फोकस कर रहे हैं। लिहाजा उनके प्रयास सार्थक होंगे तो इस वीआईपी इलाके में सक्रिय वाहन चोरों का गैंग भी पकड़ा जा सकेगा।
ये हैं हालात
ये सच है या झूठ यदि कमिश्नर पड़ताल कराएंगे तो साफ हो जाएगा कि चंद रोज पहले आरडीसी में होटल-बार और रेस्टोरेंट कराने वालों के साथ पुलिस की एक मीटिंग हुई। मीटिंग में मौजूद पुलिस के अफसर ने 20 हजार रुपये महीने की पेशकश की। सीधे तौर पर हिदायत दी गई कि 20 हजार रुपये महीना देना होगा, वरना कारोबार को कायदे-कानूनों को ताक पर रखकर चलाना भारी पड़ेगा। कुछ ने सहमति दे दी। कुछ ने विचार कर बताने को कहा, तो कुछ ने असमर्थता जता दी। लेकिन साहब का फरमान साफ था। यानि होटल-रेस्टोरेंट में बिना कानून का पालन किए कुछ गलत किया तो सोच लेना। पुलिस लगातार इसी फोकस में है कि कहां कायदे-कानून का उलंघन हो रहा है, वो भी वहां जो सुविधा शुल्क नहीं दे रहे या देने में आना-कानी कर रहे हैं।
धड़ाधड़ हो रही वाहन चोरी, किसी को फिक्र नहीं
इसके इतर आलम ये है कि चाहें पुलिस कमिश्नर का ऑफिस हो, जिलाधिकारी कार्यालय हो, जिला न्यायालय केंपस हो, कचहरी हो या फिर आरडीसी। वाहन चोरी की वारदातें लगातार और लगभग हर रोज हो रही हैं। मगर, खाकी को उनमें शामिल गिरोह को पकड़ने या उन पर अंकुश लगाने और या फिर ऑपरेशन लंगड़ा के तहत उन्हें खाकी का रसूख दिखाने की फुरसत ही नहीं है।
ये है ताजा दर्ज केस
कचहरी परिसर में ही बने राज्य कर विभाग के प्रधान सहायक के पद पर कार्यरत सुरेंद्र कुमार ने एक अप्रैल को अपनी मोटर साइकिल कार्यालय के बाहर ही केंपस में खड़ी की थी। शाम को डयूटी करके नीचे लौटे तो देखा बाइक गायब थी। पुलिस ने चार दिन जांच के नाम पर टहलाया। सोमवार को घटना की रिपोर्ट दर्ज की।
सरकारी ही नहीं आम भी बनते हैं शिकार
ऐसा नहीं कि ये सिर्फ पहला मामला है बल्कि इससे पहले जिलाधिकारी कार्यालय, पुलिस उपायुक्त कार्यालय, आबकारी विभाग समेत तमाम सरकारी कार्यालयों में तैनात कर्मचारियों से लेकर दर्जनों वकीलों और उनके मुवक्किल तक वारदातों के शिकार हो चुके हैं। पुलिस कई-कई दिन बाद केस दर्ज करती है। मगर घटनाओं का कोई खुलासा नहीं।
थाने का रिकॉर्ड गवाह
इस वीआईपी इलाके में होने वाली घटनाओं को लेकर अधिवक्ताओं से लेकर सरकारी कर्मचारी तक परेशान हैं। कई बार इस संबंध में उच्चाधिकारियों से शिकायतें भी की जा चुकी हैं। मगर, इसका असर यहां सक्रिय पुलिसिंग में नजर नहीं आता। लगभग हर दिन यहां वाहन चोरी की इक्का-दुक्का वारदातें दर्ज होती हैं, जो इस बात को तस्दीक करती हैं कि इस वीआईपी एरिया में वाहन चोरों का किस कदर आतंक हैं।