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सीएमओ कार्यालय गाजियाबाद
गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
गाजियाबाद के तीन बड़े अस्पतालों में 35 से ज्यादा डॉक्टरों की कमी है। विशेषज्ञ चिकित्सकों के अभाव में मरीजों को दिल्ली के सरकारी और निजी अस्पतालों में इलाज कराने के लिए मजबूर होना पड़ा है। डॉक्टरों की कमी के कारण गाजियाबाद की सेहत सुधरने का नाम नहीं ले रही है और चिकित्सकों को भी संसाधनों के अभाव में काम करना पड़ रहा है।
तीन लाख से अधिक मरीज
गाजियाबाद जिले में सरकारी अस्पतालों की ओपीडी लगातार बढ़ ही है। आंकड़े बताते हैं कि जिले में अब तक 3,02,271 मरीज अस्पतालों के साथ सीएचसी और पीएचसी पर इलाज कराने पहुंचे। यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में ,17,133 ज्यादा रहा। अगर तीन बड़े अस्पतालों की बात करें तो एमएमजी अस्पताल में 87279, संजयनगर संयुक्त अस्पताल में 30980 और जिला महिला अस्पताल में 22542 मरीजों का ओपीडी में उपचार किया गया। अस्पतालों में सबसे ज्यादा विशेषज्ञ चिकित्सकों का अभाव है। सबसे ज्यादा कॉर्डियोलॉजिस्ट, किडनी रोग विशेषज्ञ, हड्डी रोग सर्जन, रेडियोलॉजिस्ट की कमी है। पूरे जिले में इन विशेषज्ञ चिकित्सकों के ना होने से अस्पताल रेफरल यूनिट बनकर रह गए हैं। ऐसे में परिजनों को अपनी मरीज की जान बचाने तके लिए दिल्ली के सरकारी अस्पताल या निजी अस्पतालों में से एक चयन करना पड़ रहा है।
महिला अस्पताल,8 डॉक्टरों की कमी
जिले के एकमात्र महिला अस्पताल में चिकित्सकों के 17 पद स्वीकृत हैं। लेकिन तैनात केवल 9 हैं। अस्पताल में तीन बाल रोग, छह ईएमओ, तीन स्त्री रोग के पद है। लेकिन कार्यरत एक या दो ही हैं। एमएमजी अस्पताल में कुल 37 स्वीकृत हैं। लेकिन 23 डॉक्टर ही तैनात हैं। 14 विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी से अस्पताल जूझ रहा हैं। 166 बेड आर्थोपैडिक सर्जन, कॉर्डियोलॉजिस्ट, प्लास्टिक सर्जन, दो ईएमओ, एक बाल रोग चिकित्सक, दो सर्जन के पद रिक्त चल रहे हैं। इसके कारण मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
संयुक्त अस्पताल में 20 डॉक्टर तैनात
सबसे बुरा हाल संजयनगर स्थित संयुक्त अस्पताल का है। यहां 42 स्वीकृत पद हैं। लेकिन वर्तमान तैनाती 24 चिकित्सकों की हैं। एक बाल रोग, पांच ईएमओ, तीन आर्थोपैडिक सर्जन, एक फिजिशियन, तीन सर्जन, एक कॉर्डियोलॉजिस्ट, तीन स्त्री रोग विशेषज्ञ, एक महिला चिकित्सक, दो रेडियॉजिस्ट, दो एनेस्थेटिस्ट, एक ईएनटी और एक दंत चिकित्सक का अभाव हैं। अस्पताल को स्ट्रक्चर तो दे दिया गया, लेकिन डाक्टरों की कमी के कारण यह केवल रेफरल यूनिट के रूप में उपयोग हो रहा है। इसको लेकर शासन की कोई चिंता नहीं हैं।
ऑर्थोपेडिक और सर्जन नही
लोनी के संयुक्त अस्पताल अभी पूरी तरह पटरी पर नहीं आ पाया है। अस्पताल को ऑर्थोपेडिक और सामान्य सर्जन नहीं मिल पाये हैं। साथ ही कॉर्डियोलॉजिस्ट की भी कमी है। इसके कारण अभी भी मरीजों को दिल्ली के सरकारी अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ रहा है।