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पीड़ित के फोटो
गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) का एक अहम हिस्सा है, तेजी से शहरी विकास की राह पर अग्रसर है। लेकिन इस प्रगति की छाया में शहर की सबसे ज़रूरी बुनियादी सेवा — स्वास्थ्य व्यवस्था — बदहाल स्थिति में है। खासकर सरकारी अस्पतालों की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि गरीब और मध्यमवर्गीय लोगों के लिए वहां इलाज कराना किसी चुनौती से कम नहीं रह गया है।
संयुक्त चिकित्सालय का मामला
हाल ही में एक शर्मनाक घटना हॉट सिटी सरकारी अस्पताल में सामने आई, जिसने सरकारी चिकित्सा तंत्र की असंवेदनशीलता को उजागर कर दिया। एक महिला, जो सीटी स्कैन कराने अस्पताल पहुंची थी, उसे वहां मौजूद स्टाफ ने न केवल बुरी तरह डांटा, बल्कि उसकी सीटी स्कैन की पर्ची उसके चेहरे पर फेंक दी और उसे अपमानित करके अस्पताल से बाहर निकाल दिया गया। यह घटना न केवल अमानवीय व्यवहार का प्रतीक है, बल्कि इससे यह भी स्पष्ट होता है कि सरकारी अस्पतालों में मरीजों के साथ किस स्तर की दुर्व्यवहार की जा रही है।
कड़ी प्रतिक्रिया
इस प्रकरण पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. बी.पी. त्यागी ने गहरी नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि सरकारी अस्पतालों की स्थापना का उद्देश्य समाज के गरीब और जरूरतमंद तबके को मुफ्त या सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं देना था, लेकिन आज स्थिति बिल्कुल विपरीत हो चुकी है। अस्पतालों में संसाधनों की भारी कमी है, डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की संख्या अपर्याप्त है, और जो मौजूद हैं, वे भी संवेदनशीलता और जिम्मेदारी से कोसों दूर हैं।
समस्याओं का अंबार
गाजियाबाद के अन्य सरकारी अस्पतालों की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है। मरीजों को लंबी कतारों में खड़े रहना पड़ता है, डॉक्टरों से मिलने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है, और कई बार जरूरी दवाइयाँ तक उपलब्ध नहीं होतीं। कुछ अस्पतालों में तो साफ-सफाई और पीने के पानी तक की सुविधा नहीं है। ये हालात न सिर्फ सरकारी तंत्र की नाकामी का परिणाम हैं, बल्कि आम जनता के स्वास्थ्य अधिकारों का भी उल्लंघन है। सरकार की ओर से समय-समय पर स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के दावे और घोषणाएं होती रहती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इनसे मेल नहीं खाती। जब तक अस्पतालों में मानवता और सेवा की भावना से काम करने वाले चिकित्सक और कर्मचारी नहीं होंगे, तब तक कोई भी योजना कारगर नहीं हो सकती।
सरकार उठाए ठोस कदम
अब समय आ गया है कि सरकार इन मुद्दों पर केवल बयानबाजी न करे, बल्कि ठोस कदम उठाए। अस्पतालों में स्टाफ की संख्या बढ़ाई जाए, उन्हें संवेदनशीलता और व्यवहार कुशलता की ट्रेनिंग दी जाए, और मरीजों की शिकायतों के समाधान के लिए एक प्रभावी निगरानी तंत्र तैयार किया जाए। स्वास्थ्य सेवाएं किसी भी समाज की रीढ़ होती हैं। यदि वही चरमरा जाएं, तो आम जनता का विश्वास भी टूटने लगता है। अतः आवश्यक है कि गाजियाबाद सहित पूरे प्रदेश में सरकारी अस्पतालों की स्थिति को सुधारने के लिए गंभीर और त्वरित प्रयास किए जाएं, ताकि हर नागरिक को सम्मानजनक और गुणवत्तापूर्ण इलाज मिल सके।
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