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फाइल फोटो
गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
स्वास्थ्य विभाग द्वारा हाल ही में जारी एक पत्र में इस बात पर गंभीर चिंता जताई गई है कि शहरों में बच्चे अत्यधिक मोबाइल फोन के उपयोग से शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, व्यावहारिक और भावनात्मक समस्याओं का शिकार हो रहे हैं। यह मुद्दा केवल गाजियाबाद तक सीमित नहीं है, बल्कि देशभर में एक चिंताजनक सामाजिक चुनौती बनता जा रहा है। स्मार्टफोन जहां ज्ञान और सूचना का माध्यम बन सकते हैं, वहीं इनका अनियंत्रित उपयोग बच्चों के संपूर्ण विकास पर नकारात्मक असर डाल रहा है।
समस्याएं:
शारीरिक समस्याएं: लंबे समय तक मोबाइल स्क्रीन देखने से बच्चों को आंखों की समस्याएं (जैसे- ड्राई आई, धुंधला दिखना), गर्दन व रीढ़ की हड्डी में दर्द, नींद की कमी और मोटापा जैसी समस्याएं हो रही हैं। कई बच्चे शारीरिक खेलों से दूर होते जा रहे हैं, जिससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी प्रभावित हो रही है।
मनोवैज्ञानिक समस्याएं:
लगातार ऑनलाइन रहने से बच्चों में एक तरह का आभासी जुड़ाव (Virtual Attachment) पैदा हो रहा है, जिससे अकेलापन, अवसाद और चिड़चिड़ापन बढ़ता जा रहा है। इंटरनेट पर मिलने वाली अनियंत्रित सामग्री के संपर्क में आने से उनमें डर, भ्रम और असुरक्षा की भावना भी जन्म लेती है।
व्यावहारिक समस्याएं:
मोबाइल की लत बच्चों में आक्रामकता, बात-बात पर झुंझलाहट, पढ़ाई से अरुचि और सामाजिक गतिविधियों से दूरी जैसे व्यवहारिक बदलावों को जन्म देती है। कई बच्चे मोबाइल छिनने पर हिंसक व्यवहार भी दिखाने लगे हैं।
भावनात्मक समस्याएं:
बच्चों में आत्मविश्वास की कमी, भावनात्मक अस्थिरता, सहनशक्ति की कमी और रिश्तों के प्रति उपेक्षा का भाव भी मोबाइल की अधिकता से पैदा हो रहा है।
समाधान:
इस चुनौती से निपटने के लिए एक समन्वित प्रयास की आवश्यकता है जिसमें अभिभावक, शिक्षक, स्वास्थ्य विशेषज्ञ और नीति-निर्माता सभी की भूमिका अहम है।डिजिटल डिटॉक्स की आदत डालना: बच्चों के लिए "नो मोबाइल डे" जैसे नियम बनाकर उन्हें डिजिटल डिटॉक्स की आदत डलवानी चाहिए। मोबाइल का उपयोग केवल अध्ययन या सीमित मनोरंजन तक सीमित रखें।
सक्रिय जीवनशैली को प्रोत्साहित करना: खेलकूद, योग, नृत्य, पेंटिंग जैसी रचनात्मक गतिविधियों में बच्चों की भागीदारी बढ़ाएं। इससे न केवल शारीरिक स्वास्थ्य सुधरेगा, बल्कि मानसिक संतुलन भी बेहतर होगा।
पारिवारिक संवाद बढ़ाना: अभिभावकों को बच्चों से नियमित संवाद करना चाहिए। भोजन साथ करना, कहानियाँ सुनाना, साझा गतिविधियों में भाग लेना भावनात्मक जुड़ाव को मजबूत करता है।
डिजिटल शिक्षा और अनुशासन: बच्चों को इंटरनेट के सकारात्मक उपयोग की शिक्षा दें। उन्हें बताएं कि कौन-सी सामग्री उनके लिए उपयुक्त है और किससे बचना चाहिए। अभिभावक कंटेंट फ़िल्टरिंग टूल्स का भी उपयोग कर सकते हैं।
स्कूल स्तर पर जागरूकता अभियान: विद्यालयों को चाहिए कि समय-समय पर डिजिटल सेहत विषय पर कार्यशालाएं आयोजित करें। इसमें बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों को मोबाइल के नकारात्मक असर और उनके समाधान से अवगत कराया जाए।
स्वास्थ्य परामर्श की व्यवस्था: यदि किसी बच्चे में मोबाइल की लत गंभीर हो, तो मनोचिकित्सक या बाल मनोवैज्ञानिक से परामर्श लिया जाए ताकि समय रहते सुधार हो सके।
मोबाइल भी ज़रूरी
मोबाइल आधुनिक जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुका है, लेकिन इसका विवेकपूर्ण उपयोग ही बच्चों के भविष्य को सुरक्षित रख सकता है। गाजियाबाद स्वास्थ्य विभाग की चेतावनी एक अवसर है, चेतावनी भी और चेतनता का आह्वान भी। अब समय आ गया है कि हम सब मिलकर एक ऐसा वातावरण बनाएं जहाँ तकनीक हमारी सहायक हो, हमारी मालिक नहीं। बच्चों को बचपन का सही स्वाद और संतुलन देना ही उनकी सबसे बड़ी जरूरत है।