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सीएमओ कार्यालय गाजियाबाद
गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आम जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से चलाई जा रही संजीवनी योजना के क्रियान्वयन में गंभीर लापरवाही सामने आई है। गाजियाबाद जनपद में इस योजना को सफल बनाने के लिए लगातार स्वास्थ्य विभाग द्वारा दिशा-निर्देश जारी किए जा रहे हैं, बावजूद इसके कई चिकित्सक इसमें रुचि नहीं ले रहे हैं। स्थिति इतनी चिंताजनक है कि कुछ चिकित्सकों ने तो महीने भर में 10 से भी कम टेली-कंसल्टेशन किए हैं, जबकि योजना के तहत यह अपेक्षा की जाती है कि चिकित्सक प्रतिदिन दर्जनों मरीजों को परामर्श दें।
10 डॉक्टर रडार पर
स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा हाल ही में किए गए निरीक्षण के दौरान इस लापरवाही पर गहरी नाराजगी जताई गई। स्वास्थ्य सचिव ने स्पष्ट निर्देश दिए कि जो चिकित्सक योजना में रुचि नहीं ले रहे हैं, उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए और आवश्यक हो तो उनकी सेवा समाप्त कर दी जाए। इस निर्देश के अनुपालन में गाजियाबाद के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. अखिलेश मौर्य ने खराब प्रदर्शन करने वाले 10 चिकित्सकों को नोटिस जारी कर उनसे जवाब-तलब किया है।
सीएमओ ने कहा
डॉ. आशुतोष मोहन ने बताया कि संजीवनी योजना के तहत ओपीडी में आने वाले मरीजों को विशेषज्ञ चिकित्सकों से टेलीफोन पर परामर्श दिलवाने और आवश्यक दवाएं उपलब्ध कराने की सुविधा है। कुछ चिकित्सक महीने में दो से ढाई हजार तक टेली-कंसल्टेशन कर रहे हैं, लेकिन कुछ चिकित्सक ऐसे भी हैं जिन्होंने पूरे महीने में मुश्किल से 10 मरीजों को परामर्श दिया है। यह न केवल योजना की भावना के विरुद्ध है, बल्कि आमजन की स्वास्थ्य सुविधा से खिलवाड़ भी है।
इनको दिया नोटिस
जिन चिकित्सकों को नोटिस जारी किया गया है, उनमें नेवला भट्टी लोन के अजीत सिंह, राजापुर मोटा के सोनू, जावली लोनी के विवेक यादव, अबूपुर मुरादनगर की अनामिका, सिकरौड़ा राजापुर के रेहान राणा, मुरादनगर की कीर्ति रावत, हर्षित यादव, डिडौली मुरादनगर के नवीन यादव, गरौली लोन की निकिता, और पुर्सी मुरादनगर की राखी पाल शामिल हैं। इन सभी चिकित्सकों से पूछा गया है कि उन्होंने योजना में अपेक्षित योगदान क्यों नहीं दिया और क्यों न उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
काम तो करना होगा
यह स्थिति स्पष्ट करती है कि सरकारी योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के लिए केवल नीतियाँ पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि उन्हें लागू करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों की जवाबदेही भी सुनिश्चित करनी होगी। यदि संजीवनी योजना को वाकई आम लोगों के लिए लाभकारी बनाना है, तो इस प्रकार की लापरवाही को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। स्वास्थ्य विभाग की यह सख्ती आने वाले समय में अन्य जिलों के लिए भी एक चेतावनी साबित हो सकती है।