/young-bharat-news/media/media_files/2025/03/23/cHMGlW4Hkc3ehhdp2l47.jpg)
घंटाघर शहीद भगत सिंह की प्रतिमा
गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता
राजनीति में भी राजनीति कितनी हावी है यह किसी को बताने या समझाने की शायद आवश्यकता नहीं है, क्योंकि राजनीति के बारे में हर कोई बखूबी जानता है। यदि कोई सही काम लोकहित में होने जा रहा हो और उसके बीच राजनीति घुस जाए तो वह काम संभव से असंभव हो जाता है। जैसा कि गाजियाबाद के चहुमुखी विकास कराने वाले नगर पालिका के पूर्व चेयरमैन स्वर्गीय लाला रामानुज दयाल की प्रतिमा के साथ हुआ।
घटिया राजनीति
आपको यह सुनकर जोर का झटका धीरे से लगेगा कि जिस जगह यानी घंटाघर पर सरदार भगत सिंह की प्रतिमा लगी है उस जगह सेठ रामानुज दयाल की प्रतिमा लगनी थी। घंटाघर पर रामानुज दयाल की मूर्ति लगाने का प्रस्ताव पास भी हुआ।किंतु प्रतिमा लगने और लगाने में भी उस वक्त के राजनेताओं की राजनीति बीच में आढ़े आ गई।
आए थे ज्ञानी जैल सिंह
घंटाघर का स्थान चिन्हित होने के बावजूद भी रामानुज दयाल की प्रतिमा नहीं लग सकी और फिर काफी जद्दोजहद के बाद शहीद भगत सिंह का नाम राजनीति के तहत आया और तब फिर रामानुज दयाल की प्रतिमा ना लगाकर शहीद भगत सिंह की प्रतिमा का अनावरण किया गया। उस दौरान शहीद भगत सिंह की प्रतिमा का अनावरण करने के लिए भारत के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह आए थे। तब यह आश्वासन दिया गया कि लाल रामानुज दयाल की मूर्ति किसी अन्य स्थान पर लगा दी जाएगी, पर ऐसा नहीं हुआ।
अंग्रेज कमिश्नर से लिया लोहा
इस खबर के माध्यम से बताना यह है कि राजनीति राजनीति ही होती है। बात उस वक्त की है जब मेरठ में अंग्रेज कमिश्नर बैठा था और चार द्वारों के अंदर बसे गाजियाबाद की सड़क का निर्माण होना था। चंद एरिया में बसे गाजियाबाद के लोगों ने उस वक्त की नगर पालिका के चेयरमैन रामानुज दयाल से सड़क बनवाने की विनती की। शहर वासियों की मांग पर फाइल तैयार करते हुए रामानुज दयाल अंग्रेज कमिश्नर के पास मेरठ पहुंच गए। फाइल को देखकर अंग्रेजी झाड़ते हुए अंग्रेज कमिश्नर ने फाइल पर साइन करने से इनकार कर दिया।
लगा था जोर का झटका
फाइल पर साइन न होने से रामानुज दयाल को थोड़ा झटका लगा और उन्होंने सोचा कि मैं अपने शहर वासियों को क्या जवाब दूंगा। तो उन्होंने दिमाग लगाया और अंग्रेज कमिश्नर से कहां की साहब वहां का रास्ता खुद गया है और काफी गहरे गड्ढे भी हो गए हैं। यदि बारिश पड़ गई तो लोगों का वहां से निकलना भी मुश्किल हो जाएगा। तब अंग्रेज ने कहा कि मैं वहां जाकर देखूंगा कि रास्ता खुदा है या नहीं।
अंग्रेज कमिश्नर को फसाया
रामानुज दयाल तत्काल मेरठ से गाजियाबाद पहुंचे और शहर वासियों के साथ मिलकर रोड को खुदवा डाला। क्योंकि कमिश्नर को निरीक्षण करने आना था, सड़के खुद ही नहीं थी। लोग सड़क खोदकर हटे ही थे कि तभी अचानक अंग्रेजी शासक का काफिला जांच करने आ गया। तब कहीं जाकर सड़क का निर्माण हुआ। ऐसे महानुभाव रामानुज दयाल की प्रतिमा राजनीति की भेंट चढ़ गई और आज तक कहीं उनकी प्रतिमा नहीं लग सकी।