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डॉ योगेंद्र शर्मा एवं प्रवीण कुमार
प्रसिद्ध साहित्यकार प्रवीण कुमार ने कहा कि आज वसंत पंचमी के पावन दिन सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार एवं संपादक डॉ योगेन्द्र दत्त शर्मा के कविनगर स्थित आवास ‘कवि कुटीर’ पर उनसे मुलाक़ात हुई।सुखद वार्तालाप के बाद उन्होंने मुझे अपने चौथे उपन्यास ‘बोधिवृक्ष पर भट्टतौत उर्फ़ तमाशा मेरे आगे’ की प्रथम प्रति भेंट की।304 पृष्ठों के इस वृहत उपन्यास को अद्विक पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है।उपन्यास का शीर्षक तो रोचक है ही, चर्चित चित्रकार डॉ लाल रत्नाकर की सुंदर कलाकृति ने आवरण को बेहद आकर्षक बना दिया है।दिल्ली के भारत मंडपम में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में 8 फ़रवरी को विधिवत रूप से इसका लोकार्पण किया जाएगा।
साहित्य की सेवा साधना अत्यंत कठिन कार्य
अपने प्राक्कथन में योगेन्द्र जी कहते हैं कि कोई लेखक अगर वास्तविक लेखकीय सरोकारों से विमुख होकर एक यूटोपिया में जीने लगता है और अपने आसपास फैंटेसी का संसार रचता है तो त्रासदी और विडंबना से उसका साक्षात्कार अवश्यंभावी है।व्यवहारिक जीवन और लेखकीय दुनिया दो अलग-अलग संसार हैं।एक का संबंध भौतिक जीवन मूल्यों से है तो दूसरे की शरणस्थली आध्यात्मिकता है।दो अलग-अलग संसारों को एक मान लेने की भूल एक अंधे वियाबान की तरफ़ ले जा सकती है।
व्यंग्यात्मक शैली में है शानदार प्रयास
इसी बात को इस उपन्यास में व्यंग्यात्मक शैली में कहने का प्रयास किया गया है।इस उपन्यास की प्रारंभिक रूपरेखा उनके मन में करीब 40 वर्ष पहले बननी शुरू हुई थी जिसे ठोस आकार लेने में इतना समय गुजर गया।वह बताते हैं कि उन्हें ऐसा महसूस होता रहा कि एक तोता उनके काँधे पर आकर बैठ जाता है।वह उनके साथ संवाद करता है।उन्हें कालिदास और बाणभटट की गौरवशाली साहित्यिक परंपरा का वाहक बताता है।उन्हें एक श्रेष्ठ कृति के सृजन के लिए प्रेरित करता है और अंत में अचानक से कहीं ग़ायब हो जाता है। बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि इस उपन्यास को लिखना उनके लिए गहरी पीड़ा से गुजरने की तरह रहा है। मैंने उपन्यास को पढ़ना शुरू कर दिया है।
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