/young-bharat-news/media/media_files/2025/02/11/F4KyI0MYgEnLjCMZPEiN.jpg)
गाजियाबाद न्यायालय
गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम,1987 में उल्लिखित प्रावधान के अनुसार राष्ट्रीय लोक अदालत का गठन सेवानिवृत या सेवारत न्यायिक अधिकारियों और अन्य व्यक्तियों से मिलकर होने तथा राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (लोक अदालत) विनियम, 2009 में अन्य व्यक्तियों में विधिक प्रोफेशन से कोई सदस्य, सेवारत या सेवानिवृत कार्यपालक, लोक अदालत की विषय वस्तु से संबंधित क्षेत्र से कोई प्रोफेशनल व्यक्ति, ऐसे ख्याति प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता जो व्यक्तियों के कमजोर वर्गों जिसके अंतर्गत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, स्त्री, बालक, ग्रामीण और शहरी श्रमिक के उत्थान में लगे हैं और जिनकी विधिक सेवा स्कीमों या कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में रुचि है, में से कोई एक या दो होंगे, संबंधी प्राविधान किये गये हैं
हाई कोर्ट से आया पत्र
मानवाधिकार कार्यकर्ता अधिवक्ता विष्णु कुमार गुप्ता ने बताया कि गाजियाबाद में जनपद न्यायालय में आयोजित लोक अदालत गठन में उक्त प्रावधान के अंतर्गत अन्य व्यक्तियों को सम्मिलित न किए जाने पर मुख्य न्यायाधीश उ0प्र0 हाई कोर्ट जो उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के मुख्य संरक्षक भी हैं, को एवं उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति प्रशासनिक जज (गाजियाबाद) को पत्र भेजकर 8 मार्च, 2025 को आयोजित हुई लोक अदालत में अन्य व्यक्तियों को सम्मिलित कर लोक अदालत आयोजित कराये जाने के लिए निवेदन किया गया था ।
लंबित मामलों का निस्तारण
बरता भाई के लोक अदालत के माध्यम से लाखों ऐसे मुकदमों का निस्तारण किया जाता है जो काफी समय से लंबित होते हैं ऐसे मुकदमों में जुर्माना सजा बड़ी होना और समायोजन शुल्क आदि जमा कर मुकदमे के अनुसार न्यायाधीश फैसला रहते हैं इसके बाद पीड़ित को बार-बार अदालत के चक्कर नहीं काटने पड़ते हैं फिर से एक लोक अदालत में लाखों लंबित मुकदमों का निस्तारण होता है जिसे जन सामान्य को बेहद राहत मिलती है।