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फाइल फोटो
गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
लव जिहाद का शिकार होने के बाद न्याय की उम्मीद लिए कोर्ट पहुंची एक युवती अब खुद असुरक्षित महसूस कर रही है। मामला एक गंभीर आपराधिक घटना और प्रशासनिक उदासीनता की परतें खोलता है। प्रार्थनी ने फैजान उर्फ अक्षय नामक युवक के खिलाफ शादी का झांसा देकर शारीरिक और मानसिक शोषण, जबरन धर्म परिवर्तन के दबाव और धोखाधड़ी के आरोप में मुकदमा दर्ज कराया था। यह मामला क्रॉसिंग रिपब्लिक थाना क्षेत्र में दर्ज हुआ।
पुलिस की कार्यशैली पर सवाल
फैजान की गिरफ्तारी के बाद न्याय प्रक्रिया आरंभ हुई, किंतु पुलिस की कार्यशैली पर शुरू से ही सवाल उठते रहे हैं। पुलिस ने दो नामजद आरोपियों को बिना उचित जांच के केस से बाहर कर दिया और मुख्य अभियुक्त फैजान की जमानत में भी अप्रत्यक्ष रूप से सहायता की। जेल से छूटने के बाद फैजान ने कोर्ट में तारीख पर आने वाली पीड़िता को लगातार डराने और धमकाने की कोशिशें कीं। 29 अप्रैल 2025 को जब युवती अदालत में पेशी पर आई, तो कोर्ट परिसर से बाहर निकलते समय आरडीसी गेट पर कुछ अज्ञात लोगों ने उसका पीछा किया और उस पर हमला करने का प्रयास किया। दुपट्टा खींचने जैसी हरकत कर युवती को भयभीत किया गया। उसने अपने मोबाइल से हमलावरों के फोटो व वीडियो लिए और तुरंत पुलिस चौकी पर शिकायत दर्ज कराई, फिर कविनगर थाने जाकर शिकायत की रिसीविंग भी प्राप्त की।
गंभीर नही है पुलिस
लेकिन इस घटना को गंभीरता से लेने के बजाय पुलिस ने समय निकालते-निकालते मामला टाल दिया। जांच शुरू नहीं हुई, सीसीटीवी फुटेज, मोबाइल लोकेशन या अन्य तकनीकी साक्ष्यों का संज्ञान नहीं लिया गया। यहां तक कि 27 मई को पुलिस ने यह कहते हुए मुकदमा दर्ज करने से मना कर दिया कि घटना उनका क्षेत्राधिकार नहीं है और अब बहुत समय बीत चुका है।9 जून को युवती ने मुख्यमंत्री पोर्टल (आईजीआरएस) पर शिकायत की, जिसके बाद 13 जून को चौकी बुलाकर पुलिस ने उसे अपमानित किया, कहा कि “हर फोटो देखकर हम कैसे मान लें कि पीछा किया गया?” युवती द्वारा सबूत देने के बावजूद पुलिस ने जांच करने से परहेज किया और उस पर ही झूठे आरोप लगाने का संकेत देने लगी। ओटीपी मांगने की घटना से यह संदेह गहराता है कि शिकायत को निष्प्रभावी करने का प्रयास किया जा रहा है।
पीड़िता ही एकमात्र गवाह
युवती इस मुकदमे की एकमात्र गवाह है और लगातार धमकियों के चलते उसे अपनी जान का खतरा महसूस हो रहा है। यदि समय रहते सुरक्षा नहीं दी गई और निष्पक्ष जांच नहीं हुई तो यह न्याय व्यवस्था में आम जनता के भरोसे को गहरा आघात पहुंचा सकता है। यह मामला केवल एक पीड़िता का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की संवेदनहीनता और महिला सुरक्षा पर गंभीर प्रश्नचिह्न है।