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Market Dispute: अफसर-जनप्रतिनिधियों के अहम ने कराया बेज्जत, परेशान हुए दुकानदार

कमिश्नरेट व्यवस्था बनने के बाद पुलिस-प्रशासनिक अफसरों और जनप्रतिनिधियों के बीच तालमेल का अभाव शनिवार को न सिर्फ गाजियाबादियों को बेज्जत करा गया। बल्कि जता गया कि यहां अहम से बढ़कर किसी के लिए कुछ नहीं।

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Rahul Sharma
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गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता।

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सूबे के मुख्य सचिव ने शनिवार को जिस तरह से पुलिस कमिश्नर के आदेश को रद्द करते हुए हिदायत दी और नगर निगम को इस विवाद का निबटारा करने को कहा उसने साफ कर दिया है कि जिले में यदि जनप्रतिनिधियों और अफसरों के बीच तालमेल होता, तो मुख्य सचिव को सार्वजनिक हिदायत न देनी पड़ती। लेकिन बड़ा सवाल ये कि इस अहम से हुए पैंठ बाजार के दुकानदारों के नुकसान की जिम्मेदारी कौन लेगा ?

ये सिर्फ पुलिस के लिए शर्मनाक नहीं

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गाजियाबाद में पैंठ बाजारों पर लगी रोक के सवाल पर अफसरों को दिए निर्देशों को जानकारी देते मुख्य सचिव। फोटो-सुनील पंवार
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पुलिस के खिलाफ पहले से ही मोर्चा खोले हुए लोनी के विधायक शनिवार को मुख्य सचिव के सार्वजनिक तौर पुलिस को हिदायत देने से बेहद गदगद होंगे। वो इसे अपनी बड़ी जीत और पुलिस कमिश्नर की हार के रूप में देख रहे होंगे। लेकिन स्थिति सभी के लिए शर्मनाक है। वो चाहें जिले के तमाम विभागों के अफसरों के लिए हो या फिर जनप्रतिनिधियों के लिए।

ऐसे शुरू हुआ विवाद

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पुलिस कमिश्नर ने एक फरमान जारी किया। आदेश थे यातायात व्यवस्था की राह में रोड़ा बनने वाले तमाम पैंठ बाजारों को हटाया जाए। उन्हें लगने से रोका जाए। कमिश्नर की मंशा थी कि जिले की जनता को जाम की समस्या से इसके जरिये राहत मिले। मकसद ठीक था। मंशा भी साफ थी। मगर, दिक्कत तब हुई जब कुछ लोग इस आदेश को लेकर सकारात्मक प्रयासों और जनता को राहत देने वाले फैसले में संशोधन की बजाय विरोध में आ गए।

सबसे पहले संजीव ने किया हस्तक्षेप

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गाजियाबाद के विधायक और बीजेपी के महानगर अध्यक्ष ने इस मामले को लेकर सबसे पहले पुलिस कमिश्नर से बात की और उनसे दुकानदारों को दूसरी जगह चुनने के लिए सात दिन की मोहलत देने को कहा। विधायक के इस सुझाव के बाद भी जब दुकानदारों को रोका गया, तो वो संजीव शर्मा के आवास पर पहुंचे और मदद की गुहार लगाई। इलाके के एसीपी से हस्तक्षेप के बाद दो दिन का वक्त मिला और जगह चिंहित करने को कहा गया।

सांसद ने किया प्रयास

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इसी दौरान विधायक और बीजेपी महानगर अध्यक्ष संजीव शर्मा ने सांसद अतुल गर्ग से मामले को लेकर चर्चा की। जिस पर सांसद ने पहले रक्षा मंत्रालय से बात की उसके बाद उन्होंने नगर आयुक्त को पत्र लिखकर प्रकरण में रक्षा मंत्रालय से बात कर लाईन पार क्षेत्र में रक्षा मंत्रालय की भूमि के संबंध में बात कर यहां की पैंठ को शिफ्ट कराने के प्रयास करने का अनुरोध किया। ये पत्र 6 फरवरी को लिखा गया।

पैंठ बाजार एसो.ने भी किया पत्राचार

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छह फऱवरी को ही साप्ताहिक पैंठ बाजार एसोसिएशन ने भी रक्षा मंत्रालय के संपत्ति अधिकारी को पत्र लिखकर इस बाबत प्रयास करने को कहा।

ऐसे बढ़ा विवाद

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सांसद ने नगर आयुक्त को पत्र लिखा। रक्षा मंत्रालय में बात की। मगर पैंठ बाजार पर रोक लगाने के पुलिस कमिश्नर के आदेश को लेकर उनसे विधायक संजीव शर्मा के अलावा किसी ने संपर्क नहीं साधा। महापौर ने भी एक बयान जारी कर कहा कि बाजारों से अवैध उगाही रोकने के लिए बोर्ड बैठक में प्रयास होगा, और अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली। उधर, लोनी विधायक नंदकिशोर गूर्जर भी मामले को लेकर जिम्मेदार लोगों सांसद, पुलिस कमिश्नर, जिलाधिकारी से बात करने की बजाय सात जनवरी को अपने इलाके में सब्जी की दुकान लगाकर बैठ गए। पुलिस कमिश्नर को कोसा। मुख्य सचिव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और अपनी कमिश्नर के खिलाफ चल रही राजनीति को तवज्जो दी। नतीजा अफसर-जनप्रतिनिधियों की आपसी कलह के चलते मामला बढ़ता गया।

अहम के फेर में फंसे हैं अफसर-जनप्रतिनिधि

इस मामले में जिलाधिकारी, नगर आयुक्त, जीडीए वीसी, पुलिस कमिश्नरमें संवाद होना चाहिए था। जिले के सांसद और महापौर के अलावा जिले के तमाम विधायकों का संवाद होना चाहिए था। मगर, नहीं हुआ। सब अपने-अपने अहम के चलते आपसी संवाद से बचते रहे। नतीजा ये रहा कि सत्तारूढ़ दल के एक विधायक को अपनी ही सरकार में सरकारी मशीनरी के सामने नंगे पांव होना पड़ा। अन्न त्यागने और माला धारण नहीं करने की शपथ लेनी पड़ी। इतने पर भी अहम आड़े आता रहा और पुलिस कमिश्नर से लेकर मुख्य सचिव तक पर आरोपों की बौछार होती रही। नतीजतन मुख्य सचिव पुलिस को भी नसीहत दे गए और साबित कर गए कि अहम के फेर में पड़े अफसरों के साथ-साथ जनप्रतिनिधि भी छोटे-छोटे मामलों को आपसी संवाद से हल कराने की बजाए, उन्हें निजी स्वार्थों से तूल देने और बढ़ाने में लगे हैं।

क्या सिर्फ हार-जीत पर होगी चर्चा ?

इसमें शक नहीं कि जिले के पुलिस कमिश्नर ने बाजारों की वजह से जाम लगने की समस्या का जो फैसला लिया वो गलत था। हां उसके लिए जो आदेश जारी किया उसे अमल में लाने से पहले जिले के अन्य संबंधित विभागों से और जिले के प्रतिनिधियों से यदि संवाद कर लेते तो जो शनिवार को हुआ वह न होता। और उससे पहले जो कुछ लाइव, एक्शन और ड्रामा पिछले कई दिन से चला वो भी नहीं होता। लेकिन मुख्य सचिव के शनिवार के बयान और हिदायत को यदि अफसर और जनप्रतिनिधि एक दूसरे की हार या जीत के लिहाज से देखेंगे तो निश्चित तौर पर बाजारों की वजह से होने वाली जाम की परेशानी से गाजियाबादियों को कभी राहत नहीं मिलने वाली। लिहाजा जरूरी है कि हार-जीत देखने की बजाय जिले से जाम के झाम को खत्म करने के लिए की गई इस कोशिश पर कैसे अमल कराया जाए उस पर सभी अपने अहम को किनारे रखकर जल्द से जल्द फैसला लें।

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