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फाइल फोटो
गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत मिशन के तहत खुले में शौच पर रोक लगाने के लिए नगर निगम को करोड़ों रुपये का बजट प्राप्त हुआ था। इस बजट से शहर में सार्वजनिक टॉयलेट और यूरिनल का निर्माण कराया गया था, ताकि नागरिकों को स्वच्छ और सम्मानजनक सुविधा मिल सके। लेकिन आज इन टॉयलेट्स की स्थिति यह है कि अधिकांश टूटे, गंदे और अनुपयोगी हालत में पड़े हैं।
टूटे गंदे टॉयलेट
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. सुनील वैध ने नगर निगम की इस लापरवाही को लेकर नगर आयुक्त और शासन के समक्ष गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने बताया कि ग्रीन बेल्ट, सड़कों के किनारे और नालों के पास लोगों को खुले में शौच करने को मजबूर देखा जा सकता है। इसका प्रमुख कारण निगम द्वारा निर्मित शौचालयों की जर्जर हालत है।उदाहरण के तौर पर वैशाली सेक्टर-1 में इलाहाबाद बैंक के सामने बना यूरिनल पिछले 18 महीनों से टूटा पड़ा है। इसी तरह अंसल प्लाजा के बाहर स्थित यूरिनल पिछले छह महीनों से खराब है। वसुंधरा सेक्टर-19 और महाराजपुर स्थित टॉयलेट भी लंबे समय से टूटी अवस्था में हैं। बावजूद इसके निगम की कोई टीम इन स्थलों का निरीक्षण करने नहीं पहुंची।
बेअसर सेवा पखवाड़ा
निगम प्रशासन द्वारा “सेवा पखवाड़ा” के दौरान सफाई व्यवस्था सुधारने के बड़े-बड़े दावे किए गए थे, लेकिन हकीकत यह है कि सेवा पखवाड़ा समाप्त हुए काफी समय बीत चुका है, फिर भी सुधार के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। नागरिकों का कहना है कि यह न केवल स्वच्छता मिशन की भावना के विपरीत है बल्कि शहर की छवि को भी धूमिल कर रहा है।जनता अब उम्मीद कर रही है कि नगर निगम इन स्थलों की मरम्मत कराकर स्वच्छता की वास्तविक तस्वीर पेश करेगा, वरना “खुले में शौच मुक्त शहर” का दावा केवल कागजों तक सीमित रह जाएगा।