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फाइल फोटो
गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
गाजियाबाद नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार की परतें एक-एक कर खुलती जा रही हैं। ताजा मामला सफाई कर्मचारियों की ड्यूटी और उपस्थिति को लेकर सामने आया है। नगर निगम में करीब 4,000 सफाई कर्मचारी पंजीकृत हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि इनमें से बड़ी संख्या में कर्मचारी कभी ड्यूटी पर दिखाई ही नहीं देते। बावजूद इसके, उन्हें नियमित वेतन दिया जा रहा है।
ड्यूटी सेटिंग
सूत्रों के मुताबिक, इस पूरे घोटाले की कमान नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मिथिलेश और कुछ सफाई नायकों के हाथों में है। यह 'ड्यूटी सेटिंग' का खेल है, जिसमें नाम मात्र के लिए कर्मचारियों के नाम उपस्थिति रजिस्टर में जोड़ दिए जाते हैं। जबकि वे कर्मचारी या तो निजी कार्यों में व्यस्त रहते हैं या फिर राजनीतिक संरक्षण के चलते ड्यूटी से मुक्त होकर घरों में आराम फरमा रहे होते हैं।
ड्यूटी' का खेल
स्थानीय नेताओं और ठेकेदारों की मिलीभगत से कुछ कर्मचारियों के नाम ऐसे ‘अनदेखी ड्यूटी’ वाले स्थानों पर दर्ज कर दिए जाते हैं, जहां न तो कोई निगरानी होती है और न ही उपस्थिति चेक की जाती है। कर्मचारी आएं या न आएं, वेतन हर महीने उनके खातों में पहुंच जाता है।
व्यवस्था प्रभावित
नगर निगम के कई वार्डों में स्थिति इतनी खराब है कि सप्ताहों तक सफाई कर्मचारी नहीं दिखते। मगर कागजों में सब कुछ "साफ-सुथरा" दर्शाया जाता है। इसका सीधा असर आम नागरिकों पर पड़ता है, जिन्हें गंदगी, बीमारी और असुविधा का सामना करना पड़ता है। वहीं, सरकार को लाखों रुपये का आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है।
बायोमेट्रिक सिस्टम
यह सवाल भी उठ रहा है कि बायोमेट्रिक हाजिरी प्रणाली लागू होने के बावजूद ये घोटाला कैसे संभव हो रहा है? कहीं न कहीं सिस्टम के साथ छेड़छाड़ या मिलीभगत की आशंका को बल मिलता है।
क्या कहता है यह भ्रष्टाचार?
यह मामला केवल वित्तीय नहीं, बल्कि ‘स्वच्छ भारत मिशन’ जैसे राष्ट्रीय अभियानों की साख पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। इससे साफ होता है कि पारदर्शिता और जवाबदेही की सख्त ज़रूरत है।
जांच की मांग
इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। केवल वही कर्मचारी वेतन के हकदार हों जो वास्तव में कार्यरत हों। वरना यह खेल जनता की मेहनत की कमाई पर डाका डालता रहेगा।