गजियाबाद, चीफ रिपोर्टर।
दावे बड़े-बड़े मगर, अमल में इतनी देरी। सवाल तो बनता है। जी हां ! हम बात कर रहे हैं नगर निगम में महापौर द्वारा पकड़े गए तेल घोटाले की, जिसमें पेट्रोल पंप पर खुलेआम निगम के कर्मचारी ही तेल की चोरी कर रहे थे। चोरी भी दो चार लीटर की नहीं बल्कि दो हजार लीटर तेल की, यानि हर महीने 60 हजार लीटर तेल। उस दौरान महापौर और नगर आयुक्त दोनों की ही तरफ से दावा किया गया था कि तेल की इस चोरी में शामिल किसी भी बड़े छोटे शख्स को बख्शा नहीं जाएगा। दोषियों के खिलाफ एफआईआर भी कराई जाएगी। लेकिन समय बीतता जा रहा है। लेकिन एफआईआर छोड़िए संविदा कर्मचारी को रगड़कर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। सवाल बनता है कि आखिर क्यों नहीं दर्ज कराई जा रही इतने बड़े स्तर पर चल रहे गोलमाल में एफआईआर, ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके।
तेल चोरी को लेकर सैकड़ों बार हुई शिकायतें
गौरतलब है कि निगम की गाड़ियों से तेल की चोरी करके उसे निजी लोगों को बेच देने और सरकार को चपत लगाने के मामले की सैकड़ों बार शिकायतें हुई। शिकायतों का संज्ञान नहीं लिया गया। जब मामला मीडिया में उछला तो सरकारी पंप से निगम की गाड़ियों को तेल देने की व्यवस्था की गई। मगर, वहां भी तेल की खुलेआम चोरी पकड़ी गई। इतना सब होने के बावजूद तेल का खेल जारी है और न जाने क्यों निगम के अफसरों से लेकर महापौर और नगर आयुक्त भी इस मुद्दे पर शांत हैं।
न सत्ता पक्ष आवाज उठा रहा, न विपक्ष, आखिर माजरा क्या है ?
सबसे ज्यादा चौंकाने वाली तो ये है कि चलो सत्तारूढ़ दल से होने की वजह से इस तेल के खेल पर बीजेपी का कोई पार्षद सवाल-जवाब नहीं कर रहा। मगर, ताज्जुब इस बात का है कि विपक्षी दलों के पार्षद भी मामले पर चुप्पी साधे हैं। सवाल पूछना लाजमी है कि आखिर माजरा क्या है ? क्या हमाम में सभी नंगे हैं ?
न नगर आयुक्त से, न महापौैर से हो सकी बात
मामले को लेकर नगर आयुक्त के कार्यालय के साथ ही महापौर के कार्यालय जाकर संपर्क करने की कोशिश की गई। मगर दोनों ही उपलब्ध नहीं थे। मंशा थी कि उनसे प्रकरण को लेकर उनका पक्ष या मामले पर अपडेट लिया जा सके। मगर, मुलाकात संभव नहीं हुई।