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Navratra: एक मंदिर जो 1857 की क्रांति का गवाह भी और माता की कृपा बरसाने वाला भी...जाने कौन सा है वो मां का धाम...

क्या आप जानते हैं माता के उस मंदिर को जहां भक्तों की हर अरदास देवी मां पूरी तो करती ही हैं, बल्कि करीब साढ़े पांच सौ साल पुराना वो मां का धाम 1857 की क्रांति में बलिदान देने वाले देशवासियों की शहादत का भी मूक गवाह है। जानिये उस मंदिर का इतिहास

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Rahul Sharma
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गाजियाबाद के मोदीनगर स्थित सीकरी गांव का प्राचीन और एतिहासिक माता मंदिर।

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गाजियाबाद, चीफ रिपोर्टर।

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कहते हैं कि वहां जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से माता से किसी भी तरह की मनोकामना करता है, वो पूरी हो जाती है। गाजियाबाद की मोदीनगर तहसील के गांव सीकरी कलां के सीकरी माता मंदिर की हम बात कर रहे हैं। ये मंदिर धार्मिक दृष्टि से तो अहम है ही, साथ ही 1857 की क्रांति का गवाह है ये सीकरी माता का मंदिर। इसे अपनी छांव से ढापने वाले वटवृक्ष में कई स्वतंत्रतासेनानियों के बलिदान की कहानी छिपी है। 

मंदिर को लेकर मान्यता

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मोदीनगर के गांव सीकरी में माता महामाया देवी का मंदिर करीब 550 वर्ष पुराना बताया जाता है। मंदिर पर हर साल नवरात्र में 9 दिन का मेला लगता है। इसमें श्रद्धालु माता से पूजा के दौरान अपनी मन की मुरादे पूरी करने की कामना करते हैं। मान्यता है कि सीकरी माता की आराधना और दर्शन से भक्तों की सभी मनोकामनाएं और अभिलाषाएं पूरी होती हैं। इसी के चलते हर साल नवरात्र में लगने वाले मेले में यहां लाखों की तादात में भक्तो की भीड़ उमड़ती है।

शहीदों का वटवृक्ष

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1857 की क्रांति में देशवासियों की शहादत का प्रतीक वटवृक्ष।
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इस मंदिर में एक वटवृक्ष भी है। जिसे शहीदों का वटवृक्ष कहा जाता है। ये मंदिर 1857 की क्रांति का भी गवाह रहा है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जब अंग्रेजो के खिलाफ गांव के लोगों ने हल्ला बोला और अंग्रेजो को वापस लौटने को मजबूर कर दिया था। मगर, चालाक अंग्रेजों ने धोखे से गांव को घेर कर तोपो से गोले और बंदूकों से गांव वालों पर गोलियां बरसाई। जिसमे सैकड़ों ग्रामीण शहीद हुए थे। कुछ लोगो ने अपनी जान बचाने के लिए मंदिर के नीचे बने तयखाने में जाकर छिप गए। जिन्हें वहां से अंग्रेजों ने पकड़ कर मंदिर में बने इसी वटवृक्ष पर फांसी पर लटका दिया था। ये बरगद का वही पेड़ है, जो मंदिर मे आज भी 1857 की क्रांति में देशवासियों की शहादत की गवाही देता है। मंदिर में जो भक्त माता की पूजा करने आते है, वो इस वटवृक्ष के पेड़ को भी नमन कर उन क्रांतिकारियों को भी श्रद्धा सुमन अर्पित करते है।

 

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