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Politics : सपा के पूर्व स्थानीय अध्यक्ष का भतीजा आरएसएस की देहलीज़ पर, दोनों हाथ में लड्डू

उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख औद्योगिक शहर, लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अन्य राष्ट्रीय दलों का गढ़ रहा है। समाजवादी पार्टी (सपा), जो उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक अहम भूमिका निभाती रही है, गाजियाबाद में पिछले तीन दशकों से राजनीतिक रूप से लगभग

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Syed Ali Mehndi
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से सृजित चित्र

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गाजियाबाद,वाईबीएन संवाददाता 

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उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख औद्योगिक शहर, लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अन्य राष्ट्रीय दलों का गढ़ रहा है। समाजवादी पार्टी (सपा), जो उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक अहम भूमिका निभाती रही है, गाजियाबाद में पिछले तीन दशकों से राजनीतिक रूप से लगभग अप्रासंगिक रही है। 30 वर्षों में सपा गाजियाबाद जिले से एक भी विधायक नहीं जिता पाई है, जो उसकी कमजोर जमीनी पकड़ को दर्शाता है।

बदल रहा है सपा संगठन

हालांकि, हाल के वर्षों में पार्टी संगठन में कुछ बदलाव देखने को मिले हैं। सपा ने स्थानीय स्तर पर नए चेहरों को मौका देना शुरू किया है, संगठनात्मक ढांचे में सुधार लाया गया है और युवाओं को जोड़ने की पहल की जा रही है। इससे यह संकेत जरूर मिलते हैं कि पार्टी अपनी पुरानी गलतियों से सीख लेकर नए सिरे से खुद को मजबूत करने की दिशा में प्रयासरत है। लेकिन क्या यह प्रयास पर्याप्त हैं? इसका उत्तर अब भी समय के गर्त में छिपा हुआ है। इस बीच, सपा के अंदर से एक हैरान करने वाली जानकारी सामने आ रही है, जिसने राजनीतिक हलकों में चर्चा को जन्म दे दिया है। गाजियाबाद के एक पूर्व अध्यक्ष, जो कभी समाजवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक माने जाते थे, अब अपने परिवार के सदस्यों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ जोड़ रहे हैं। बताया जा रहा है कि उनके उद्यमी भाई ने आरएसएस से नजदीकियां बढ़ा ली हैं, जबकि उनका भतीजा सीधे तौर पर आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार की टीम का हिस्सा बन चुका है।

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सपा नेता भाजपा प्रेम 

यह घटनाक्रम कई सवाल खड़े करता है। क्या यह सपा के भीतर विचारधारा की ढीलापन का संकेत है? या फिर यह परिवार राजनीतिक भविष्य की संभावनाओं को दोनों ओर साधने की रणनीति पर काम कर रहा है? राजनीतिक जानकार इसे 'बैक डोर पॉलिटिक्स' की संज्ञा दे रहे हैं, जहां समाजवादी पार्टी से वर्षों तक लाभ लेने वाले नेता अब भाजपा में संभावनाएं तलाश रहे हैं।भाजपा और आरएसएस के लिए यह एक रणनीतिक जीत मानी जा सकती है। समाजवादी पार्टी के कुछ पुराने चेहरों का संघ से जुड़ना संकेत करता है कि भाजपा अपने विरोधियों के भीतर भी पैठ बना रही है। वहीं सपा के लिए यह एक बड़ी चुनौती है कि वह न केवल संगठनात्मक स्तर पर मजबूत हो, बल्कि अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं की विचारधारा को भी स्पष्ट रूप से तय करे।

आत्मचिंतन की आवश्यकता

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गाजियाबाद में सपा के लिए यह वक्त आत्मचिंतन और संगठनात्मक अनुशासन को पुनर्स्थापित करने का है। अगर पार्टी को यहां भविष्य में कोई राजनीतिक सफलता हासिल करनी है, तो उसे न केवल जनता का भरोसा जीतना होगा, बल्कि अपने भीतर की दोहरी राजनीति से भी निपटना होगा। वरना, सपा की कहानी गाजियाबाद में सिर्फ अतीत का हिस्सा बनकर रह जाएगी।

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