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गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
लोनी से भाजपा विधायक नंदकिशोर गुर्जर हमेशा चर्चा में रहते हैं। उनकी राजनीतिक शैली बेहद आक्रामक मानी जाती है। वे अपने विचारों और रुख को खुलकर सामने रखने में विश्वास करते हैं। विरोधियों पर सीधा प्रहार करना और मंच से बेबाकी से बोलना उनकी पहचान बन चुकी है। यही कारण है कि उनके समर्थक भी अक्सर उसी अंदाज को अपनाने की कोशिश करते हैं। लेकिन यहां फर्क यह है कि जहां विधायक अपने राजनीतिक अनुभव और प्रभाव से विवादों से बच निकलते हैं, वहीं उनके करीबी या प्रतिनिधि कानून की जद में आकर जेल की सलाखों तक पहुंच जाते हैं।
ललित शर्मा का मामला
2019 का मामला इसका बड़ा उदाहरण है। विधायक नंदकिशोर गुर्जर के प्रतिनिधि रहे ललित शर्मा पर आरोप लगा कि उन्होंने खाद्य सुरक्षा अधिकारी के साथ मारपीट की और सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाई। मामला सामने आते ही पुलिस हरकत में आई और ललित शर्मा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। यह घटना उस समय बेहद सुर्खियों में रही।राजनीतिक गलियारों में इस पर काफी चर्चा हुई कि विधायक के करीबी का इस तरह से पुलिसिया शिकंजे में आना एक बड़ा संकेत है। हालांकि शुरू में नेताओं ने इसे राजनीतिक साजिश बताया, लेकिन धीरे-धीरे यह मामला ठंडा पड़ गया और अंततः ललित शर्मा को अदालत और पुलिस की कार्यवाही का सामना करना पड़ा। इस घटना ने यह साबित कर दिया कि आक्रामकता की नकल करना आसान तो है, लेकिन उसका परिणाम हमेशा सकारात्मक नहीं होता।
मंडी बवाल और हरीश चौधरी
हाल ही में 11 अगस्त को साहिबाबाद की नवीन फल एवं सब्जी मंडी में बड़ा बवाल हुआ। इस विवाद ने पूरे गाजियाबाद जिले की राजनीति को हिला दिया। मंडी के आढ़ती भारत भाटी ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई, जिसमें हरीश चौधरी, उसके बेटे, दो भतीजों समेत 25 अज्ञात लोगों को नामजद किया गया।पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए मुख्य आरोपी हरीश चौधरी सहित आठ आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया। हरीश चौधरी को विधायक नंदकिशोर गुर्जर का बेहद करीबी माना जाता है। यही वजह रही कि जैसे ही उसका नाम सामने आया, विपक्ष ने इसे विधायक की शैली और उनके प्रभाव से जोड़कर देखना शुरू कर दिया।
शैली की नकल और नतीजे
दरअसल, विधायक नंदकिशोर गुर्जर की राजनीतिक शैली "फ्रंट फुट की राजनीति" के रूप में जानी जाती है। वे विरोधियों को सीधी चुनौती देने में यकीन रखते हैं। इससे समर्थकों को भी संदेश जाता है कि राजनीति में आक्रामकता से ही पहचान बनती है। लेकिन राजनीति और कानून के बीच का फर्क समझ पाना अक्सर उनके साथियों के लिए मुश्किल हो जाता है।ललित शर्मा और हरीश चौधरी के मामले साफ दिखाते हैं कि विधायक की नकल करना उनके समर्थकों के लिए भारी पड़ा। विधायक तो अपने अनुभव और राजनीतिक रसूख के चलते कई बार विवादों से निकल आते हैं, लेकिन उनके करीबी लोग कानून की गिरफ्त में आ जाते हैं और जेल की यात्रा उनका इंतजार करती है।लोनी विधायक नंदकिशोर गुर्जर की छवि एक आक्रामक और बेबाक नेता की है। उनकी राजनीति ने उन्हें सुर्खियों में बनाए रखा है, लेकिन उनके समर्थकों के लिए यह शैली अब तक अधिकतर मुसीबत साबित हुई है। चाहे 2019 में ललित शर्मा का मामला हो या फिर 2025 का मंडी बवाल, दोनों घटनाएं यह बताती हैं कि विधायक की तरह बनने की कीमत जेल यात्रा तक पहुंचकर चुकानी पड़ती है।राजनीतिक जीवन में अनुकरण करने के बजाय अपने विवेक से आगे बढ़ना ही बेहतर होता है। वरना नेता की नकल करते-करते कई बार अनुयायी अपनी राजनीतिक जमीन खो बैठते हैं और कानूनी शिकंजे में फंस जाते हैं। यही वजह है कि विधायक के समर्थकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वे उनके आक्रामक अंदाज से प्रेरणा लें, लेकिन कानूनी दायरे से बाहर जाकर कदम न उठाएं।
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