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Politics : ट्रिपल इंजन सरकार नहीं कर रही है सुनवाई,भाजपा पार्षदों की हो रही है रुसवाई

गाजियाबाद नगर निगम में बीते कुछ दिनों से जो दृश्य सामने आ रहे हैं, वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तथाकथित "ट्रिपल इंजन" सरकार की असफलता की ओर इशारा करते हैं। केंद्र, राज्य और नगर निगम—तीनों जगह भाजपा की सरकार होते हुए भी नगर निगम के अंदर

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Syed Ali Mehndi
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भाजपा पार्षदों का धरना

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गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता

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गाजियाबाद नगर निगम में बीते कुछ दिनों से जो दृश्य सामने आ रहे हैं, वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तथाकथित "ट्रिपल इंजन" सरकार की असफलता की ओर इशारा करते हैं। केंद्र, राज्य और नगर निगम—तीनों जगह भाजपा की सरकार होते हुए भी नगर निगम के अंदर भाजपा के पार्षदों को अपनी ही सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन करना पड़ रहा है। यह स्थिति न केवल चौंकाने वाली है बल्कि भाजपा के भीतर मचे अंतर्विरोध को भी उजागर करती है।

 हाउस टैक्स वृद्धि

दरअसल, मामला है हाउस टैक्स में प्रस्तावित वृद्धि का। नगर निगम द्वारा की गई इस वृद्धि का भाजपा के पार्षदों ने कड़ा विरोध किया है। पार्षदों का कहना है कि जनता पहले से ही महंगाई की मार झेल रही है और ऐसे में टैक्स का बोझ बढ़ाना नाजायज है। हैरानी की बात यह है कि यह विरोध किसी विपक्षी दल का नहीं बल्कि उन्हीं जनप्रतिनिधियों का है जो भाजपा के ही टिकट पर चुनाव जीतकर आए हैं।

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 विषम परिस्थिति 

भाजपा पार्षदों का विरोध सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं रहा। वे देर रात तक नगर निगम में जमीन पर बैठकर प्रदर्शन करते रहे। ना तो कोई सुविधा उन्हें मिली, ना ही नगर निगम प्रशासन या मेयर की तरफ से कोई सकारात्मक संवाद हुआ। यह पहली बार देखा गया है कि जहां सदन में पूर्ण बहुमत भाजपा के पास है, वहां पार्टी के जनप्रतिनिधियों को ही संघर्ष की राह पर उतरना पड़ रहा है।

 बेहद परेशान पार्षद 

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पार्षदों का आरोप है कि महापौर और नगर आयुक्त, दोनों ने हाउस टैक्स वृद्धि को लेकर पार्षदों की भावनाओं की अनदेखी की है। भाजपा पार्षदों के अनुसार, 30 जून को हुई बोर्ड बैठक में सर्वसम्मति से टैक्स वृद्धि के प्रस्ताव को खारिज किया गया था। लेकिन इसके बाद नगर निगम प्रशासन ने मनमाने तरीके से इसे लागू करने का प्रयास किया, जिससे पार्षदों और जनता में भारी रोष है।

 राजनीतिक उठापटक 

यह स्थिति भाजपा की संगठनात्मक असहमति और संवादहीनता को उजागर करती है। जब खुद पार्टी के जनप्रतिनिधि अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठने को मजबूर हो जाएं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि ‘ट्रिपल इंजन’ की ताकत सिर्फ चुनावी नारे तक सीमित रह गई है।

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 मजबूत नेतृत्व आवश्यक

भाजपा नेतृत्व को अब आत्ममंथन की जरूरत है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि पार्टी के ही जनप्रतिनिधि जनता के हित में अपनी ही सरकार से लड़ने पर मजबूर हो गए हैं। यदि संवाद की यह खाई जल्द नहीं पाटी गई, तो यह असंतोष आगामी चुनावों में पार्टी को भारी पड़ सकता है।

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