गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता
जिले के अंतर्गत आने वाली लोनी विधानसभा क्षेत्र एक बार फिर सियासी उठा-पटक का केंद्र बनता नजर आ रहा है। यहां की राजनीति में दो बड़े चेहरे—विधायक नंदकिशोर गुर्जर और पूर्व चेयरमैन मनोज धामा—एक बार फिर आमने-सामने हो सकते हैं। बीते कुछ समय से दोनों के बीच राजनीतिक और व्यक्तिगत टकराव की चर्चा जोरों पर रही है, और अब हालात ऐसे बनते दिख रहे हैं कि यह टकराव एक बार फिर मुखर हो सकता है।
कमिश्नर का तबादला
हाल ही में गाजियाबाद के कमिश्नर अजय मिश्रा का स्थानांतरण हुआ है। यह बदलाव विधायक नंदकिशोर गुर्जर के लिए राहत की खबर मानी जा रही है, क्योंकि अजय मिश्रा के साथ उनके संबंध तनावपूर्ण बताए जाते थे। अब उनके जाने से गुर्जर खेमा और अधिक सक्रिय होता दिखाई दे रहा है। वहीं, दूसरी ओर मनोज धामा, जो कभी विधायक के करीबी माने जाते थे, अब खुले तौर पर अलग रुख अख्तियार कर चुके हैं।
मनोज धामा की वापसी
मनोज धामा अब लोनी क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ को दोबारा स्थापित करने की कवायद में जुटे हैं। उनके समर्थक यह दावा कर रहे हैं कि आने वाले नगर निकाय चुनावों में वे फिर से चेयरमैन पद के प्रबल दावेदार होंगे। इस बीच चर्चा यह भी है कि वह विधानसभा चुनावों में भी अपनी दावेदारी ठोक सकते हैं, जिससे सीधे तौर पर विधायक गुर्जर की राह में चुनौती खड़ी हो सकती है।
दोनों की महत्वाकांक्षा
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि दोनों नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं और बढ़ता राजनीतिक प्रभाव क्षेत्र एक-दूसरे से टकराव की जड़ बन चुके हैं। लोनी की जनता भी इस सियासी खींचतान को बखूबी देख रही है और अब उनका रुझान तय करेगा कि अगली राजनीति किस करवट बैठेगी।
लोनी की राजनीति
लोनी की राजनीति में जातीय समीकरण भी अहम भूमिका निभाते हैं। गुर्जर और धामा दोनों ही समुदाय विशेष के प्रभावशाली नेता हैं, और अपने-अपने वोट बैंक को साधने में लगे हैं। ऐसे में एक बार फिर से इन दोनों के बीच सीधी टक्कर होना लगभग तय माना जा रहा है।
बदलते समीकरण
इस राजनीतिक उठा-पटक का असर न केवल लोनी की स्थानीय राजनीति पर पड़ेगा, बल्कि आगामी चुनावों में क्षेत्रीय समीकरणों को भी प्रभावित कर सकता है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों दिग्गजों में से कौन जनता का विश्वास जीतने में सफल होता है और किसकी रणनीति भारी पड़ती है।
वास्तविक नेता
लोनी की राजनीति एक बार फिर उबाल पर है। पुराने गठजोड़ टूट चुके हैं, नए समीकरण बन रहे हैं और जनता की नजर अब उन नेताओं पर है जो वास्तव में क्षेत्र का विकास और जनहित की बात करेंगे, न कि सिर्फ सियासी वर्चस्व की लड़ाई लड़ेंगे।