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Poor condition: सरकारी अस्पतालों फूला का दम, सूंघकर कर रहे हैं चेकिंग

ऐसा होने के पीछे की वजह है यहां के अस्पतालों में ब्रीद एनलाइजर का न होना। ब्रीथ एनालाइजर नहीं होने के कारण इमरजेंसी में मौजूद ईएमओ किसी वार्ड बॉय से केवल मुंह सुंघवाकर ही.........

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Syed Ali Mehndi
शराब सेवन की चेकिंग

शराब सेवन की चेकिंग

गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता

जिले के सरकारी अस्पतालों में इमरजेंसी व्यवस्था का दम फूल रहा है। यहां नशे के मामले में लाए गए लोगों की चेकिंग सूंघकर होती है। अस्पताल स्टाफ सूंघकर बताता है कि उस आदमी ने शराब पी रखी है या नहीं। दरअसल, ऐसा होने के पीछे की वजह है यहां के अस्पतालों में ब्रीद एनलाइजर का न होना। ब्रीथ एनालाइजर नहीं होने के कारण इमरजेंसी में मौजूद ईएमओ किसी वार्ड बॉय से केवल मुंह सुंघवाकर ही शराब के नशे की रिपोर्ट बना देते हैं। केवल गंभीर मामलों में ही ब्लड सैंपल लिया जाता है। ऐसा कई साल से चला आ रहा है। कई बार सरकारी अस्पतालों को ब्रीथ एनेलाइजर खरीदने और उसका प्रयोग करने के निर्देश दिए गए, एनेलाइजर तो अस्पतालों में पहुंच गए, लेकिन वह खराब हो गए और दोबारा नए मंगवाए नहीं गए।

रोजाना 30-40 मेडिको लीगल

जिले के एमएमजी और कंबाइंड अस्पताल में रोजाना 30 से 40 मेडिकोलीगल होते हैं। इनमें से कई लोग शराब के नशे में होते हैं। कुछ को पुलिस लाती है तो कुछ खुद ही पहुंचते हैं। सभी की जांच होती है, लेकिन शराब के नशे की रिपोर्ट केवल सूंघकर बनाई जाती है। यह काम भी किसी वॉर्ड बॉय या फोर्थ क्लास कर्मचारी से करवाया जाता है। उनके बताए अनुसार ही ईएमओ मेडिकल रिपोर्ट में शराब का नशा होना या नहीं होना दर्ज करते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि किसी की जुबान या कदम लड़खड़ाते हैं और सूंघने से शराब की महक नहीं आती है तो उसकी कई बार अलग-अलग वार्ड बॉय से जांच करवाई जाती है। यानी कई वॉर्ड बॉय उसका मुंह सूंघकर बताते हैं कि शराब की महक है या नहीं। इस पर फैसला बहुमत का होता है। बहुमत से जो फैसला होता है उसे ही रिपोर्ट में दर्ज कर दिया जाता है।

नहीं आ पाती मेडिकल रिपोर्ट

ऐसा नहीं है कि सरकारी अस्पतालों में ब्रीद एनेलाइजर नहीं है, लेकिन वह या तो वह खराब है या फिर इमरजेंसी में मौजूद स्टाफ और ईएमओ तक नहीं पता कि वह वह कहां रखे हैं। ऐसे में मुंह सूंघने का प्राचीन नुस्खा अपनाना ही बेहतर माना जाता है। जानकार बताते हैं कि शराब के नशे की भी एक सीमा होती है। एक निर्धारित सीमा तक अल्कोहल शरीर में हो तो उस पर कोई अपराध नहीं बनता। वाहन चलाने में इस नियम को माना जाता है। हालांकि सरकारी अस्पतालों की इमरजेंसी में यदि इस तरह का कोई मामला फंसता है तो उसका ब्लड सैंपल जांच के लिए लिया जाता है, लेकिन वह जांच रिपोर्ट केवल जांच तक ही सीमित रहती है और मेडिकल रिपोर्ट तक अधिकतर पहुंच ही नहीं पाती है। क्योंकि सरकारी अस्पतालों में पैथ लैब शाम 4 बजे बंद हो जाती है। रात में लिए एक सैंपल की जांच अगले दिन होती है और तब तक मेडिकल रिपोर्ट सब्मिट हो चुकी होती है।

ब्रीथ एनेलाइजर की डिमांड

इस मामले में जब एमएमजी अस्पताल के सीएमएस डॉ. राकेश कुमार से बात की गई तो उन्होंने कहा कि इमरजेंसी स्टाफ की ओर से इस तरह की कोई डिमांड ही उन्हें नहीं मिली है। पूर्व में ब्रीथ एनेलाइजर मंगवाए गए थे और वह इमरजेंसी में ही हैं, लेकिन किसी को पता नहीं होता। अब बजट मिल गया है, नए ब्रीथ एनेलाइजर मंगवाए जाएंगे और शराब के नशे के मामले में उनसे ही जांच करवाई जाएगी।ऐसा ही हाल संजय नगर स्थित कम्बाइंड अस्पताल का भी है। वहां भी ब्रीथ एनेलाइजर हैं, लेकिन खराब हैं। अस्पताल प्रबंधन नए ब्रीथ एनेलाइजर मंगवाने की बात कह रहा है

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