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नशा मुक्ति केंद्र
गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता
नशा मुक्ति केंद्र समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिनका उद्देश्य नशे की चपेट में आए लोगों को स्वस्थ और सामान्य जीवन की ओर वापस लाना होता है। लेकिन दुर्भाग्यवश आज यह केंद्र अपने वास्तविक उद्देश्य से भटकते नजर आ रहे हैं। हाल ही में यह तथ्य सामने आया है कि 31 मार्च तक पंजीकरण की अंतिम तिथि होने के बावजूद राज्य के 83 नशा मुक्ति केंद्रों में से किसी एक ने भी आवेदन नहीं किया है। यह न केवल नियमों की अवहेलना है, बल्कि स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
पंजीकरण आवश्यक
स्वास्थ्य विभाग ने नशा मुक्ति केंद्रों के लिए पंजीकरण की समयसीमा निर्धारित की थी ताकि उनकी कार्यप्रणाली को सुव्यवस्थित किया जा सके और उनकी निगरानी सुनिश्चित की जा सके। इसके पीछे उद्देश्य था कि सभी केंद्र एक तय मानक के अनुसार काम करें और मरीजों को सही इलाज, देखभाल व वातावरण मिल सके। लेकिन जब 83 में से एक भी केंद्र पंजीकरण के लिए आगे नहीं आया, तो यह साफ संकेत देता है कि इन केंद्रों में मनमानी चरम पर है और वे प्रशासनिक व्यवस्था से खुद को ऊपर मानते हैं।
स्थिति चिंताजनक
इन केंद्रों की स्थिति चिंताजनक इसलिए भी है क्योंकि यह आम जनता की संवेदनशील अवस्था से जुड़ा मामला है। अक्सर यह देखा गया है कि इन केंद्रों में इलाज के नाम पर मरीजों को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। अवैध वसूली, अमानवीय व्यवहार, अपर्याप्त सुविधाएं और अनट्रेंड स्टाफ जैसी समस्याएं आम हैं। लेकिन इन सभी कुरीतियों के बावजूद स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी और कार्यवाही की कमी यह दर्शाती है कि या तो विभाग अपने दायित्व को निभाने में असमर्थ है या किसी दबाव में है।
निरीक्षण का अभाव
यह भी एक बड़ी विडंबना है कि नशा मुक्ति जैसे संवेदनशील विषय पर काम कर रहे संस्थानों के खिलाफ न तो नियमित जांच होती है और न ही कोई प्रभावी कार्रवाई। जब तक ऐसे केंद्रों को जवाबदेह नहीं बनाया जाएगा, तब तक वे मनमानी करते रहेंगे और जरूरतमंदों का शोषण होता रहेगा। समस्या की गंभीरता को समझते हुए अब समय आ गया है कि सरकार और प्रशासन इस दिशा में सख्त कदम उठाएं। बिना पंजीकरण और निरीक्षण के किसी भी केंद्र को संचालन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। साथ ही, उन अधिकारियों की भी जवाबदेही तय होनी चाहिए जो ऐसे केंद्रों की अनदेखी कर रहे हैं।
समाज सेवा या धंधा
नशा मुक्ति केंद्रों को समाजसेवा का माध्यम बनाने के बजाय मुनाफे का जरिया बनाना बेहद निंदनीय है। यह न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि मानवता के विरुद्ध भी है। आवश्यकता इस बात की है कि इन केंद्रों की व्यवस्था पारदर्शी, जवाबदेह और मानवीय बने ताकि नशे के शिकार लोगों को सही मायनों में राहत और पुनर्वास मिल सके।