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खुला भोजन
गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता
आज के समय में जब स्वास्थ्य और स्वच्छता को लेकर जागरूकता बढ़ रही है, वहीं जनपद के विभिन्न क्षेत्रों में ठेली-पटरी वाले दूषित और विषाक्त भोजन बेचकर लोगों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। यह स्थिति केवल एक स्वास्थ्य संकट नहीं, बल्कि प्रशासनिक उदासीनता और भ्रष्टाचार का भी उदाहरण बनती जा रही है।
अवस्थाओं का दौरा
जनपद में लगभग एक लाख से अधिक ऐसी जगहें हैं, जहां खुले में भोजन तैयार किया जाता है और बेचा जाता है। इन स्थानों पर साफ-सफाई का अभाव, धूल-मिट्टी और वाहनों के धुएं से होने वाला प्रदूषण, तथा कीटाणुओं की भरमार एक आम दृश्य है। इन हालातों में बनने वाला भोजन स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होता है, लेकिन मजबूरीवश गरीब और मजदूर वर्ग के लोग ₹10 से ₹20 में मिलने वाले इस भोजन को ही अपनाने को विवश हैं।
जांच का अभाव
इन खाने-पीने के ठिकानों पर न तो कोई नियमित जांच होती है और न ही साफ-सफाई के मानकों का पालन। अधिकांश दुकानदार न तो हाथ धोते हैं, न ही बर्तनों की सफाई पर ध्यान देते हैं। भोजन खुले में घंटों तक पड़ा रहता है, जिससे उसमें बैक्टीरिया और अन्य रोगजनक तत्व आसानी से प्रवेश कर जाते हैं। यह भोजन पेट से जुड़ी कई गंभीर बीमारियों जैसे फूड पॉइजनिंग, डायरिया, हैजा आदि का कारण बनता है।
चिंता की बात
सबसे चिंताजनक बात यह है कि जिला प्रशासन और खाद्य विभाग की भूमिका इस पूरे मामले में बेहद लापरवाह नजर आती है। न तो समय-समय पर निरीक्षण होता है, और न ही किसी तरह की सख्त कार्रवाई। कई बार यह भी देखने में आता है कि संबंधित अधिकारियों की मिलीभगत से ऐसे विक्रेताओं को अनदेखा किया जाता है। भ्रष्टाचार की बात भी सामने आती है, जिसमें चुपचाप घूस लेकर नियमानुसार कार्रवाई नहीं की जाती।
गरीबों को नुकसान
इस स्थिति में सबसे अधिक नुकसान गरीब जनता का हो रहा है, जो सस्ते भोजन के चक्कर में अपनी जान खतरे में डाल रही है। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वह इस गंभीर समस्या पर तुरंत संज्ञान ले। खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को नियमित निरीक्षण के लिए लगाया जाए, दोषी विक्रेताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो और लोगों को स्वच्छ एवं सुरक्षित भोजन उपलब्ध कराने के लिए नीति बनाई जाए। साथ ही, विक्रेताओं को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए।
कठोर कदम आवश्यक
यदि समय रहते इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह समस्या एक बड़े जनस्वास्थ्य संकट में तब्दील हो सकती है। आवश्यकता है जिम्मेदारी निभाने की—प्रशासन की ओर से भी, और आम जनता की ओर से भी। तभी हम एक स्वस्थ और सुरक्षित समाज की ओर बढ़ सकेंगे।