गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता
बार एसोसिएशन गाजियाबाद ने सरकार द्वारा अधिवक्ता अधिनियम में संशोधन का विरोध करते हुए, राष्ट्रपति के नाम पत्र लिख अपनी आपत्ति जताई है। इसके साथ एसोसिएशन ने कुछ सुझाव भी दिए हैं। एसोसिएशन के सचिव अमित कुमार नेहरा ने बताया कि वर्तमान सरकार में अधिवक्ता अधिनियम में संशोधन संविधान की आधारभूत संरचना पर हमलों करने की नियत से लाये गये है।
एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट जरूरी
ऐसे समय में जब केन्द्रीय विधि मंत्री, अधिवक्ताओं के लिये मेडिक्लेम जीवन बीमा प्रदान करने की घोषणा कर चुके हैं व पूरे देश का अधिवक्ता समाज एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट की राह देख रहा था। जिसका प्रारूप तैयार करके बार काउंसिल उत्तर प्रदेश द्वारा लगभग 6 माह पूर्व सरकार को प्रेषित किया जा चुका है। इन संशोधनों में इस बिन्दु का वर्णन तक न होने से भी अधिवक्ताओं में मायूसी की लहर छा गयी है।
साथ ही इन संशोधनों के स्वरूप, लक्षण व नियत पर प्रश्नचिन्ह स्वाभाविक रूप से उठ खड़े हुए है। राजस्थान के विधान मंडल द्वास पारित एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट को राज्यपाल ने राष्ट्रपति की सहमति न प्रदान होने के कारण रोक दिया गया है, जिससे पता चलता है कि वर्तमान सरकार एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट पारित नहीं करना चाहती है।
/young-bharat-news/media/media_files/2025/02/21/pC1NBm1i0HOJue3roSzc.jpg)
तहसील बार का भी समर्थन
इस मामले में तहसील बार एसोसिएशन ने भी एसडीएम को ज्ञापन देकर अधिवक्ता अमेंडमेंट एक्ट के विरोध प्रदर्शन किया है। इस मौके पर तहसील बार एसोसिएशन के अध्यक्ष लोमेश कुमार भाटी ने कहा कि जिस तरह से वकीलों के खिलाफ यह बिल आया है उसको देखते हुए केंद्र सरकार की मंशा ठीक नहीं लग रही है ऐसे में इस बिल का आपको जो तरीके से विरोध किया जाना बेहद आवश्यक है।
धारा 49( बी) को खतरा
इन संशोधनों द्वारा अधिवक्ताओं की की सर्वोच्च संस्था भारतीय विधि परिषद को केन्द्र सरकार द्वारा बाध्यकारी निर्देश देने के प्राविधान से धारा 49 (बी) से पूरी संस्था की स्वायत्तता व स्वतंत्रता खतरे में आ गयी है। इतिहास साक्षी है कि अधिवक्ता समाज लोकतन्त्र का अनन्य व सजग प्रहरी है, चाहे देश का स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन हो या आपातकाल की विभीषिका अधिवक्ताओं ने ही लोकतन्त्र को अक्षुण्ण बनाये रखा है। शासन की नियत या निर्देशन जो भी हो, यह सर्वोच्च संस्था को पंगु बनाने के लिये एक खतरनाक शुरूआत है।
शिकंजे का प्रयास
अध्यक्ष दीपक शर्मा ने कहा कि सर्वोच्च संस्था के निर्वाचित स्वरूप का जानबूझकर क्षरण किया गया है। भारतीय विधिज्ञ परिषद में 5 नामित सदस्यों का प्राविधान संस्था में अनावश्यक व किसी साजिश की ओर संकेत करता है। साथ ही स्पेशल पब्लिक ग्रीवेंस रिड्रेसल कमेटी द्वारा परिषद के सभी सदस्य व पदाधिकारियों पर एक 5 सदस्यीय कमेटी का शिकंजा रखा गया है।
इन 05 सदस्यों की कमेटी में परिषद का सिर्फ एक ही सदस्य है और इसमें बहुमत न्यायाधीशों का है। यह कमेटी उपरोक्त के व्यवसायिक या अन्य कदाचरण पर अपना बाध्यकारी निर्णय देगा, जो दिखने में दमनकारी प्रतीत होता है। यह संशोधन स्वतंत्र संस्था पर कुठाराघात है. इससे आम अधिवक्ताओं के हित की रक्षा कर पाना परिषद के लिए असम्भव है।
अस्तित्व पर तलवार
राज्य के अधिवक्ता का मेरुदण्ड,प्रादेशिक विधिज्ञ परिषद के अस्तित्व पर भी तलवार लटका दी गयी हैं। परिषदों द्वारा अपना दायित्व निर्वहन न करने की स्थिति में चाहे वह किसी भी कारण का क्यों न हो,उनको भंग करने की शक्ति पहली बार भारतीय विधिज्ञ परिषद को दिया गया है। परिषद के सदस्यों की जगह उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति की अध्यक्षता में कमेटी को सौंपे जाने का प्राविधान किया गया है। स्पष्ट है कि स्वायत्तशासी राष्ट्रीय व प्रादेशिक स्तर पर स्वायत्तशासी संस्था का लोकतान्त्रिक अस्तित्व एक झटके में खत्म करने का प्राविधान इन संशोधन में है।