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जुम्मा अलविदा नमाज़
गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता
शुक्रवार यानी जुम्मा का दिन खास होता है, जिसमें सभी लोग एक साथ इकट्ठा होकर नमाज अदा सकते हैं। मगर जब बात जुम्मा-उल-विदा की आती है, तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
पाक रमजान
उफ्फ जा रहे हैं माह-ए-रमजान दिलों को पाक करके, लेकिन दुआ है कि अगले रमजान यूं ही हमें नसीब हों। अब वक्त आ रही गया रमजान को अलविदा कहने का क्योंकि अब अपने आखिरी पड़ाव पर है। देखते ही देखते जुम्मा-उल-विदा आ ही गया, जो बहुत ही मुबारक दिन है। जब सभी लोग अल्लाह से रोकर अपने रोजे, नमाज और इबादत को कुबूल करने की दुआ मांगते हैं।
बहुत अहम है जुम्मा
वैसे ही इस्लाम धर्म में जुम्मे को बहुत ही अहमियत दी गई है। जुम्मे के दिन में से एक घड़ी कबूलियत की होती है, जिसमें अल्लाह हर दुआ को कबूल करता है। यह दिन तब और खास बन जाता है, जब महीना रमजान का हो। रमजान के आखिरी शुक्रवार यानी जुम्मा को खास प्रार्थनाओं, इबादतों और कुरान की तिलावत के साथ मनाया जाता है।
जुम्मे की फजीलत
मुस्लिम लोग मस्जिदों में एक साथ इकट्ठा होकर जुम्मे की नमाज अदा करते हैं, अल्लाह से माफी मांगते हैं और रमजान के दौरान की गई इबादत के कबूलियत की दुआ मांगते हैं। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं कि इस बार का अलविदा-जुमा कब है और इसे खास क्यों माना जाता है।
अलविदा जुमा किसे कहते हैं?
अलविदा जुमा जिसे जुमात-उल-विदा भी कहा जाता है। यह रमजान महीने का आखिरी जुमा होता है। यह दिन इस्लाम में बेहद अहम माना जाता है, क्योंकि यह रमजान के आखिरी जुम्मे की नमाज होती है और इसे खास रहमतों और बरकतों से भरा हुआ माना जाता है।
क्या है जुमा का मतलब?
जुमा अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है इकट्ठा होना या एक तरह की सभा। इस्लाम में शुक्रवार को जुमा कहा जाता है, क्योंकि इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग सामूहिक रूप से मस्जिद में इकट्ठा होकर खास नमाज अदा करते हैं।
क्यों खास है जुमा-उल-विदा?
यह आखिरी शुक्रवार होता है, इसलिए लोग इसकी एहमियत को जानते हैं। यह दिन हमें बताता है कि ऐ मुसलमान, रमजान का महीना जा रहा है। अगर कुछ बचा है, तो मांग लो क्योंकि यह मुबारक महीना जा रहा है।इसलिए यह दिन बहुत ही खास और बरकतों वाला दिन माना जाता है। यह रमजान के पवित्र महीने की अलविदा नमाज होती है। इसमें दौरान लोग खुदा से तौबा करते हैं, मगफिरत की दुआ मांगते हैं और अगले रमजान की उम्मीद करते हैं।
जुमा उल विदा का महत्व
यह रमजान का आखिरी शुक्रवार होता है, जो अल्लाह की रहमतों से भरपूर माना जाता है।इस दिन किए गए सजदे और मांगी गई दुआओं से पिछले गुनाहों की माफी की उम्मीद होती है।यह दिन गरीबों और जरूरतमंद की मदद करने का सबसे अच्छा अवसर माना जाता है।यह रातें भी खास होती हैं, क्योंकि इन्हीं दिनों में शब-ए-कद्र छुपी होती है, जिसे 1000 महीनों से बेहतर बताया गया है।यह रमजान की विदाई का दिन होता है, इसलिए हर मुसलमान दुआ करता है कि अल्लाह उसे अगले साल फिर रमजान का बरकत भरा महीना नसीब करे।
कैसे मनाते हैं जुमा-उल-विदा?
वैसे तो कुरान में इसका कोई खास तरीका नहीं बताया गया है, लेकिन कुछ सुन्नतें हैं जिसे फॉलो किया जा सकता है।सुबह अच्छी तरह नहा धोकर साफ और अच्छे कपड़े पहनें, क्योंकि हमें अल्लाह के आगे झुकना होता है।मस्जिद में जाकर जुमा की खास नमाज अदा की जाती है। आप भी वक्त पर जाएं और नमाज अदा करें।कुरान की तिलावत करें और अल्लाह से अपनों के लिए दुआ मांगें और इबादत करें।गरीबों और जरूरतमंदों को सदका और जकात दें। उनके घर जाकर हाल पूछें और उनकी दुआएं लें।