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रमजान
गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता
बरकत का महीना माह-ए-रमजान। चांद का दीदार होते ही मुस्लिम समुदाय का पवित्र माह रमजान रविवार से शुरू हो गया। रमजान का महीना सबसे पवित्र महीना माना जाता है। पूरे महीने मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रखते हैं। रोजा रखने वाले व्यक्तियों की अल्लाह द्वारा उसके सभी गुनाहों की माफी दी जाती है। इसलिए प्रत्येक मुसलमान के लिए रमजान का महीना साल का सबसे विशेष माह होता है।
नियंत्रण और संयम
इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार, रमजान का महीना खुद पर नियंत्रण एवं संयम रखने का महीना होता है। गरीबों के दुख-दर्द को समझने के लिए रमजान के महीने में मुस्लिम समुदाय द्वारा रोजा रखने की परंपरा है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, रमजान के महीने में रोजा रखकर दुनिया में रह रहे गरीबों के दुख-दर्द को महसूस किया जाता है।
बुराई से दूरी
रोजा आत्म संयम व आत्म सुधार का प्रतीक रोजे के दौरान संयम का तात्पर्य है कि आंख, नाक, कान, जुबान को नियंत्रण में रखा जाना क्योंकि रोजे के दौरान बुरा नहीं सुनना, बुरा नहीं देखना, बुरा नहीं बोलना और न ही बुरा एहसास किया जाता है। इस तरह से रमजान के रोजे मुस्लिम समुदाय को उनकी धार्मिक श्रद्धा के साथ-साथ बुरी आदतों को छोड़ने के अलावा आत्म संयम रखना सिखाते हैं। इसके साथ ही यह भी मान्यता है कि गर्मी में रोजेदारों के पाप धूप की अग्नि में जल जाते हैं तथा मन पवित्र होता हो जाता है। सारे बुरे विचार रोजे के दौरान मन से दूर हो जाते हैं
रहमत बरकत मगफिरत
रमजान का यह महीना तीन भागों में बंटा होता है। मतलब यह कि एक से लेकर दस दिनों तक रहमत का अशरा होता है, तो ग्यारह से लेकर बीस तक बरकत का और 21 से लेकर 30 रोजा तक मगफिरत होता है। रमजान में इबादत का काफी महत्व होता है। यही कारण है कि लोग इबादत के साथ-साथ जकात भी निकालते हैं। जकात का अर्थ होता है जमा पूंजी का दो अथवा ढाई प्रतिशत जरूरतमंदों में दान करना।
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