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शिक्षक का अधिकार
गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता
शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) के अंतर्गत बच्चों को निजी स्कूलों में निशुल्क प्रवेश दिलाने की प्रक्रिया इस समय अभिभावकों के लिए एक कठिन चुनौती बन चुकी है। बेसिक शिक्षा विभाग और निजी स्कूलों के बीच सामंजस्य की कमी के चलते कई माता-पिता स्कूलों के और विभागीय कार्यालयों के चक्कर काटने को मजबूर हैं। स्थिति यह है कि कुछ स्कूलों में सीटें खाली होने के बावजूद बच्चों को प्रवेश नहीं मिल रहा।
गरीबों का संघर्ष जारी
GKJ इंटरनेशनल स्कूल के आरटीई प्रभारी नरेंद्र कुमार ने स्पष्ट किया कि उनके स्कूल में नर्सरी कक्षा नहीं है, लेकिन पहली कक्षा में तीन सीटें खाली हैं। उन्होंने बताया कि जिन सीटों पर प्रवेश दिया गया है, उसकी जानकारी उन्होंने बीएसए कार्यालय को लिखित में दी थी, जिसे स्वीकार भी कर लिया गया है। इसके बावजूद भी कई मामलों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। एक अभिभावक फैजान सैफी के बच्चों को प्रवेश देने के दो दिन बाद ही स्कूल से बाहर कर दिया गया, जिससे वह बेहद आहत हैं।इसी प्रकार सफायर इंटरनेशनल स्कूल, क्रॉसिंग रिपब्लिक के प्रतिनिधि अमित बख्शी ने यह स्पष्ट किया कि गलती बीएसए कार्यालय से हुई है, और इसकी जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। उन्होंने यह जानकारी मेल के माध्यम से बीएसए को दी है और जिलाधिकारी से भी संपर्क किया गया है।
क्यों बेबस है शिक्षा विभाग
इस पूरे मामले में एक और चिंताजनक पहलू यह है कि 1200 से अधिक अभिभावकों ने आरटीई के अंतर्गत आवंटित स्कूलों में अपने बच्चों को भेजने से इनकार कर दिया है, क्योंकि वे स्कूल उनकी सुविधा के अनुरूप नहीं थे या प्रवेश नहीं मिल पाया। इसके चलते लगभग 1300 बच्चे अभी भी प्रवेश से वंचित हैं। हालांकि प्रशासन का कहना है कि बाकी बच्चों को भी जल्द ही प्रवेश दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक बैठक आयोजित की जाएगी जिसमें 30 स्कूलों और अभिभावकों को आमंत्रित किया जाएगा ताकि समस्या का समाधान हो सके। यह स्थिति बताती है कि आरटीई कानून की उचित क्रियान्वयन में अब भी कई स्तरों पर कमियाँ हैं। प्रशासन, स्कूल और अभिभावकों के बीच पारदर्शिता और तालमेल की सख्त आवश्यकता है ताकि बच्चों को उनका संवैधानिक अधिकार मिल सके।