/young-bharat-news/media/media_files/2025/05/20/uwVqnjcM2st7RdKaYSQG.jpg)
जिला मुख्यालय गाजियाबाद
गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता
शिक्षा हर बच्चे का मौलिक अधिकार है, जिसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21-ए और 'शिक्षा का अधिकार अधिनियम' (RTE Act, 2009) के अंतर्गत मान्यता प्राप्त है। इस अधिनियम के अनुसार, 6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है। इस कानून के तहत निजी स्कूलों को भी अपनी कुल सीटों में से 25% सीटें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) और वंचित समूहों के बच्चों के लिए आरक्षित करनी होती हैं। लेकिन हाल ही में गाजियाबाद में इस अधिकार का उल्लंघन सामने आया है।
स्कूलों की लिस्ट तलब की
गाजियाबाद के जिलाधिकारी दीपक मीणा ने इस गंभीर मामले को संज्ञान में लिया है और शिक्षा विभाग से उन स्कूलों की सूची मांगी है जो RTE के तहत दाखिले से इनकार कर रहे हैं। यह कदम जिले में शिक्षा की समावेशिता और समानता को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा प्रयास माना जा रहा है। जिलाधिकारी ने स्पष्ट किया है कि कोई भी स्कूल कानून की अवहेलना नहीं कर सकता और यदि कोई ऐसा करता है तो उसके विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाएगी।
88 स्कूलों पर नजर
सूत्रों के अनुसार, जिले के लगभग 88 निजी स्कूल ऐसे हैं जो RTE के अंतर्गत चयनित बच्चों के दाखिले से आनाकानी कर रहे हैं। यह स्थिति न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि गरीब और जरूरतमंद बच्चों के भविष्य के साथ भी अन्याय है। इन बच्चों को बेहतर शिक्षा से वंचित करना सामाजिक असमानता को और बढ़ाता है। यही कारण है कि जिलाधिकारी ने आम जनता से भी अपील की है कि वे ऐसे मामलों की जानकारी प्रशासन को दें, जिससे दोषी स्कूलों की पहचान कर कार्रवाई की जा सके।
दाखला होना जरूरी
जिला प्रशासन द्वारा की जा रही यह पहल यह सुनिश्चित करेगी कि शिक्षा का अधिकार केवल कागजों तक सीमित न रहे, बल्कि ज़मीनी स्तर पर हर जरूरतमंद बच्चे को इसका लाभ मिले। साथ ही, यह कार्रवाई अन्य जिलों और राज्यों के लिए भी एक उदाहरण बनेगी कि सरकारी तंत्र यदि इच्छाशक्ति दिखाए तो कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन संभव है।
गंभीर है जिला प्रशासन
इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षा के क्षेत्र में सुधार तभी संभव है जब प्रशासन, समाज और शिक्षा संस्थान तीनों मिलकर अपनी जिम्मेदारी निभाएं। यदि स्कूल गरीब बच्चों को दाखिला देने से इनकार करते हैं, तो यह न केवल सामाजिक अन्याय है बल्कि संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन भी है। जिलाधिकारी दीपक मीणा की यह पहल न केवल बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाने की दिशा में एक कदम है, बल्कि शिक्षा के अधिकार को एक सशक्त सामाजिक आंदोलन में बदलने की ओर भी अग्रसर है। अब देखना यह है कि आने वाले समय में जिला प्रशासन इन 88 स्कूलों के खिलाफ क्या कदम उठाता है और किस हद तक गरीब बच्चों को न्याय दिला पाता है। जनता और प्रशासन के संयुक्त प्रयास से ही शिक्षा का अधिकार वास्तव में "सभी के लिए शिक्षा" के संकल्प को पूरा कर सकेगा।