गजियाबाद वाईबीएन संवाददाता
नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में मृतक आश्रित के नाम पर फजीवाडे का खेल कभी थम पाएगा,ऐसा दूर तक भी दिखाई नहीं दे रहा है। हैरत का पहलू ये है कि हाल में मृतक आश्रित के नाम पर खेल किए जाने का प्रकरण उजागर होने पर जो जांच कमेटी गठित की गई,उसकी पडताल भी ठंडे बस्तें में समाकर रह गई है।
केस -1
देखा जाए तो हाल में निगम के स्वास्थ्य विभाग में मृतक आश्रितों के नाम पर फजीवाडे का मुददा उठा। बाकायदा जिलाधिकारी एवं शासन के सामने लिखित में मुददा उठाया गया। शिकायत में कहा गया कि श्रीमती राजवती पत्नी स्वर्गीय अमरपाल स्थायी सफाई कर्मचारी के रिक्त पद पर सचिन पुत्र अमरपाल क नियुक्ति स्थाई वाहन चालक पद पर की गई,जबकि अमरपाल का भाई पहले से स्थायी पद पर कार्यरत है।
केस- 2
इसी तरह से श्रीमती कृष्णा पत्नी धर्मवीर सफाई कर्मचारी पद पर पर कुमारी पूजा डिकोलिया पुत्री धर्मवीर को स्थायी द्वितीय श्रेणी लिपिक के पद पर नियुक्त किया गया।इसके साथ साथ नरेश कुमार पुत्र चुन्ना लाल स्थायी सफाई कर्मचारी के रिक्त पद पर विशाल पुत्र मदन दत्तक पुत्र की नियुक्ति बिना उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्राप्त किए आर्थिक लाभ लेते हुए तैनाती की चेष्टा की जा रही है।
केस-3
इसी तरह से राहुल पुत्र स्वर्गीय किशोरी स्थायी सफाई कर्मचारी के पश्चात रिक्त पद पर श्रीमती ज्योति पत्नी स्वर्गीय राहुल द्वितीय श्रेणी लिपिक पद पर तैनाती की गई,जबकि मृतक राहुल पुत्र किशोरी की स्थाई नियुक्ति होने पर सफाई कर्मचारी का पद आश्रित के पद पर अपनी माता श्रीमती अनिता पत्नी स्वर्गीय किशोरी की स्थायी नियुक्ति होने पर सफाई कर्मचारी पद प्राप्त किया गया।
केस-4
नितिन पुत्र स्वर्गीय अशोक स्थाई सफाई कर्मचारी के रिक्त पद पर श्रीमती पूजा पत्नी नितिन को कर निरीक्षक द्वितीय श्रेणी के पद पर तैनाती की गई,जबकि मृतक नितिन पुत्र स्वर्गीय अशोक भी मृतक आश्रित के स्थान पर कार्यरत था।
जांच कमेटी गठित
बताते है कि मामला सामने आने पर नगर आयुक्त के द्वारा पांच सदस्यीय कमेटी गठित की गई थीं। कमेटी में अपर नगर आयुक्त अरूण कुमार यादव,नगर स्वास्थ्य अधिकारी डा मिथिलेश,मुख्य लेखा परीक्षक विवेक सिंह,संयुक्त नगर आयुक्त ओमप्रकाश एवं सहायक नगर आयुक्त पल्लवी सिंह को रखा गया
जांच ठंडे बस्ती में
था। 21 दिन के भीतर जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की जानी थीं। निगम के स्वास्थ्य विभाग के सूत्र बताते है किइस पूरे खेल को लेकर निगम के जिन कर्मचारियों पर गंभीर आरोप लगे वह शिकायतकर्ता को दबाव में लेने में कामयाब रहे। यहं वजह है कि मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।