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दान की अपील
गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य होने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के मामले में भी शीर्ष पर है। वर्ष 2022-23 में राज्य की नाममात्र जीडीपी 21.74 ट्रिलियन रुपये आँकी गई, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 17 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाती है। यह वृद्धि इस बात का प्रमाण है कि उत्तर प्रदेश आर्थिक रूप से सशक्त होता जा रहा है। फिर भी, इस बढ़ती अर्थव्यवस्था के बीच एक अजीब विरोधाभास देखने को मिला है – गौसेवा के लिए सरकारी तंत्र को आम जनता से दान की अपील करनी पड़ रही है।
मांगा जन सहयोग
गाजियाबाद में गोसंरक्षण एवं संवर्धन कोष समिति द्वारा बेसहारा गोवंश की देखभाल के लिए जनसहयोग मांगा जा रहा है। इसके लिए एक बैंक खाता, यूपीआई आईडी और क्यूआर कोड तक जारी किए गए हैं, ताकि लोग स्वेच्छा से दान कर सकें। इस सहयोग से सरकारी गौशालाओं के ढाँचे में सुधार, चारा उपलब्धता, पशु चिकित्सा सेवाएं और अन्य बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने की योजना है।
गाय को मां का दर्जा
भारतीय संस्कृति में गाय को मां का दर्जा दिया गया है। वह केवल एक पशु नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक आस्था का प्रतीक मानी जाती है। यही कारण है कि 'गौमाता' शब्द का उपयोग आदरपूर्वक किया जाता है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जिस राज्य की अर्थव्यवस्था इतनी विशाल और समृद्ध मानी जा रही है, क्या वहां इतनी व्यवस्था भी नहीं कि बेसहारा गोवंश की देखभाल का बोझ आम नागरिकों पर न डाला जाए? वास्तविकता यह है कि गोशालाएं अक्सर संसाधनों की कमी से जूझ रही हैं। कई बार वहां भोजन, चिकित्सा और देखरेख की उचित व्यवस्था नहीं हो पाती। परिणामस्वरूप सड़कों पर आवारा गायों की संख्या बढ़ती है, जिससे न केवल ट्रैफिक में समस्या होती है बल्कि दुर्घटनाओं की आशंका भी बनी रहती है।
स्थाई सशक्त योजना का अभाव
जनता से आर्थिक सहयोग माँगना कोई अपराध नहीं है, परंतु जब सरकार के पास पर्याप्त संसाधन हों और फिर भी धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से संवेदनशील विषयों को जनसहयोग के हवाले छोड़ दिया जाए, तो यह नीति की प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े करता है। गौसेवा जैसे विषय को स्थायी और सशक्त सरकारी योजना में सम्मिलित कर स्थायी समाधान की आवश्यकता है, ताकि यह सिर्फ एक भावनात्मक अपील बनकर न रह जाए।गौमाता की सेवा निस्संदेह पुण्य का कार्य है, परंतु इस जिम्मेदारी से सरकार स्वयं को अलग नहीं कर सकती। आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक दायित्वों को निभाना भी उतना ही आवश्यक है। यही संतुलन एक समृद्ध और उत्तरदायी शासन की पहचान होता है।
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