/young-bharat-news/media/media_files/2025/06/14/UM4dM6PWJQJfcuaZOuaW.jpg)
फाइल फोटो
गाजियाबाद,वाईबीएन संवाददाता
यशोदा हॉस्पिटल कौशांबी में हुई उज्जवल चौधरी की संदिग्ध मौत के मामले में एक बार फिर प्रशासनिक लापरवाही और संवेदनहीनता उजागर हुई है। मृतक के भाई अर्पित चौधरी ने एक बयान जारी कर जांच प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाते हुए पूरी कार्रवाई को पूर्वग्रह से ग्रसित और पक्षपातपूर्ण करार दिया है।
भाई का फूटा गुस्सा
अर्पित चौधरी ने बताया कि 10 जून को जब उन्होंने परिवार समेत यशोदा हॉस्पिटल के बाहर धरना प्रदर्शन किया था, तब मौके पर मौजूद एसीपी ने स्वयं आश्वासन दिया था कि ऑपरेशन की वीडियोग्राफी और पोस्टमार्टम की सीडी उन्हें दी जाएगी। लेकिन जब उन्होंने दोबारा संपर्क किया, तो एसीपी साहब ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि अब सारी जानकारी और साक्ष्य CMO ऑफिस से प्राप्त होंगे।vजब अर्पित चौधरी CMO ऑफिस पहुंचे, तो वहां से उन्हें बताया गया कि उज्जवल की मौत की जांच अब ADM के अधीन गठित कमेटी द्वारा की जा रही है, और सभी संबंधित दस्तावेज, वीडियोग्राफी व सीडी भी अब वहीं से मिलेंगी। इस पर जब उन्होंने जांच समिति में शामिल डॉक्टरों की सूची मांगी, तो उन्हें गहरा आघात लगा। सूची में मृतक उज्जवल चौधरी के स्थान पर उनका (अर्पित चौधरी का) नाम दर्ज था।
गैर जिम्मेदारी का आरोप
अर्पित ने इस चूक को बेहद शर्मनाक और गैरजिम्मेदार बताते हुए कहा, “इतने बड़े हादसे के बाद भी प्रशासन को मृतक का सही नाम तक मालूम नहीं है। इससे साफ पता चलता है कि जांच कितनी लापरवाही से शुरू की गई है। इससे भी गंभीर बात यह है कि अर्पित चौधरी और उनके परिवार की स्पष्ट मांग थी कि जांच सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के किसी रिटायर्ड जज की निगरानी में हो, लेकिन जांच की जिम्मेदारी ADM के अंतर्गत कार्यरत डॉक्टरों को सौंप दी गई है, जो CMO ऑफिस के ही अधीन हैं। अर्पित ने आरोप लगाया कि जांच कमेटी में स्वतंत्र मेडिकल विशेषज्ञों को नहीं जोड़ा गया है, जिससे जांच की निष्पक्षता संदिग्ध हो गई है।
परिवार को नहीं है भरोसा
“हमें इस जांच पर अब कोई भरोसा नहीं रहा,” अर्पित चौधरी ने कहा। “इस पूरी प्रक्रिया में हमें न्याय मिल पाने की उम्मीद कम होती जा रही है। परिवार ने मांग की है कि जांच में पारदर्शिता लाते हुए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समिति का गठन किया जाए, जिसमें मेडिकल काउंसिल के बाहर के विशेषज्ञों और न्यायिक अधिकारियों को शामिल किया जाए। उनका कहना है कि जब तक जांच निष्पक्ष नहीं होगी, तब तक न्याय की उम्मीद करना व्यर्थ है।