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Yashoda hospital : ऑपरेशन सिंदूर कामयाब, लेकिन सिंदूर देखकर रो देतीं है ईशा चौधरी

कौशांबी स्थित यशोदा अस्पताल में उज्जवल चौधरी की असमय मृत्यु ने एक खुशहाल परिवार को गहरे शोक और अनिश्चितता के गर्त में धकेल दिया है। 35 वर्षीय उज्जवल चौधरी हर्निया की मामूली सर्जरी के लिए अस्पताल में भर्ती हुए थे, लेकिन सर्जरी के बाद उनकी मौत हो गई।

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Syed Ali Mehndi
उजड़ गया परिवार

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गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता

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कौशांबी स्थित यशोदा अस्पताल में उज्जवल चौधरी की असमय मृत्यु ने एक खुशहाल परिवार को गहरे शोक और अनिश्चितता के गर्त में धकेल दिया है। 35 वर्षीय उज्जवल चौधरी हर्निया की मामूली सर्जरी के लिए अस्पताल में भर्ती हुए थे, लेकिन सर्जरी के बाद उनकी मौत हो गई। इस दुखद घटना ने पूरे परिवार को झकझोर कर रख दिया है। परिजनों का आरोप है कि यह मृत्यु डॉक्टरों की लापरवाही का परिणाम है। उज्जवल की पत्नी ईशा चौधरी और उनकी दो छोटी बच्चियां – 8 वर्षीया वाणी और 4 वर्षीया अवनी – आज भी इस दुख से उबर नहीं पाई हैं।

कभी खुशहाल था परिवार
कभी खुशहाल था परिवार

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पापा कब आएंगे

छोटी-छोटी बच्चियां बार-बार बस एक ही सवाल करती हैं – "पापा कब आएंगे?" यह मासूम सवाल हर बार उनकी मां ईशा चौधरी की आंखों में आंसू ले आता है। परिवार का हर सदस्य इस दर्द से टूटा हुआ है, लेकिन सबसे कठिन है इन नन्हीं बच्चियों को समझाना कि अब उनके पापा कभी वापस नहीं आएंगे। उज्जवल के छोटे भाई अर्पित चौधरी, जो अब इस परिवार की उम्मीद बने हैं, खुद अंदर से टूटे हुए हैं लेकिन बच्चों को दिलासा देने की कोशिश में लगे रहते हैं। पर उनके पास भी मासूम सवालों का कोई जवाब नहीं है।

अस्पताल पर गंभीर आरोप 

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इस घटना के बाद यशोदा अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए परिजनों और ग्रामीणों ने जोरदार प्रदर्शन किया था। स्थिति इतनी तनावपूर्ण हो गई कि पुलिस को मौके पर बुलाना पड़ा। मामले ने तूल तब पकड़ा जब भारतीय किसान यूनियन ने भी इस घटना को लेकर धरना प्रदर्शन शुरू किया और अस्पताल प्रशासन को कड़ी चेतावनी दी। यूनियन नेताओं ने मांग की कि दोषी डॉक्टरों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए और पीड़ित परिवार को न्याय मिले।फिलहाल जिला प्रशासन ने मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं और मजिस्ट्रेट जांच जारी है। उम्मीद है कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट से यह साफ हो सकेगा कि उज्जवल की मौत वास्तव में लापरवाही का परिणाम थी या किसी अन्य कारण से हुई।

उजड़ गया परिवार

लेकिन जब तक यह रिपोर्ट नहीं आती, तब तक चौधरी परिवार पीड़ा और असमंजस में जीने को मजबूर है। आज उज्जवल का घर एक सूने आशियाने में बदल गया है, जहां सिर्फ सन्नाटा और मातम पसरा हुआ है। उनकी पत्नी और बच्चियां हर दिन उस व्यक्ति को याद करती हैं, जो कभी इस घर की हंसी और उम्मीद का कारण था। अब पूरे परिवार को बस एक ही उम्मीद है – जल्द से जल्द मजिस्ट्रेट जांच पूरी हो, दोषियों को सजा मिले और उज्जवल को न्याय मिल सके। यही न्याय उज्जवल की मासूम बेटियों के सवालों का शायद एकमात्र जवाब बन सकता है।

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