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फाइल फोटो
गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
कौशांबी क्षेत्र में स्थित यशोदा अस्पताल को अब तक एक अत्यंत प्रतिष्ठित और हाई-फाई चिकित्सा संस्थान के रूप में जाना जाता रहा है। इसकी आधुनिक सुविधाएं, अनुभवी डॉक्टर, और प्रभावशाली इन्फ्रास्ट्रक्चर इसे अमीरों की पहली पसंद बनाते हैं। लेकिन हाल के दिनों में यह अस्पताल जिस तरह से विवादों में घिरता जा रहा है, वह न केवल चिंताजनक है बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं पर जनता के विश्वास को भी डगमगाने वाला है।
उज्जवल की मौत
कुछ दिन पहले उज्जवल नामक एक युवक की मामूली इलाज के दौरान मौत ने इस अस्पताल की साख पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। परिजनों का आरोप है कि युवक की मौत डॉक्टरों की लापरवाही के कारण हुई है। यदि यह आरोप सही साबित होते हैं, तो यह एक भयावह संकेत है कि कैसे एक बड़े और महंगे अस्पताल में भी लापरवाही की कीमत एक जान से चुकानी पड़ सकती है। मामले की जांच मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) द्वारा गठित टीम कर रही है, और इसके निष्कर्षों का इंतजार पूरे शहर को है।
सिर्फ पैसा ही धर्म ईमान
इस घटना ने उस कहावत को फिर से जीवित कर दिया है – "ऊँची दुकान, फीका पकवान"। यह कथन ऐसे ही प्रतिष्ठानों के लिए कहा जाता है, जहाँ दिखावा तो बहुत होता है, लेकिन असल में गुणवत्ता और सेवा का घोर अभाव होता है। आम जनता के बीच यह भावना तेजी से घर कर रही है कि बड़े अस्पताल केवल पैसे कमाने के लिए हैं, न कि मरीजों की सेवा के लिए।
आज होगा विरोध प्रदर्शन
आज की ही बात करें तो मृतक युवक उज्जवल के परिजन यशोदा अस्पताल के बाहर धरना प्रदर्शन करने वाले हैं। वे न्याय की माँग कर रहे हैं और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की अपेक्षा कर रहे हैं। यह प्रदर्शन केवल एक परिवार की पीड़ा नहीं, बल्कि उस व्यवस्था के खिलाफ आवाज है जो कभी-कभी अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाती है।
महंगे अस्पताल लापरवाह डॉक्टर
इस घटना ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या महंगे इलाज और नामी अस्पताल ही स्वास्थ्य की गारंटी हैं? आम जनता को यह समझना होगा कि केवल नाम पर नहीं, बल्कि सेवा की सच्ची गुणवत्ता पर भरोसा करना जरूरी है। सरकार और स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी बनती है कि वे ऐसे मामलों में पारदर्शिता रखें, निष्पक्ष जांच करें और यदि लापरवाही पाई जाए तो सख्त कार्रवाई करें।
ब्रांडिंग और मुनाफा
उज्जवल की मौत सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, यह पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है। यशोदा अस्पताल जैसे संस्थानों को आत्ममंथन करना होगा और यह साबित करना होगा कि वे सच में “मूल्य आधारित सेवा” में विश्वास रखते हैं, न कि सिर्फ “ब्रांडिंग और मुनाफे” में।