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गाजियाबाद नगर निगम की ओर से विजयनगर में लगाया गया वाटर एटीएम जो शुरू होते ही बंद हो गया। महीनों से बंद है।
गाजियाबाद, चीफ रिपोर्टर। जिस निगम का सालान बजट 3722 करोड़ हो। जो सूबे के हाईटेक सरकारी विभागों में गिना जाता हो। उसका हाल देखिए कि वो दिल्ली के प्रवेश द्वार वाले एनसीआर के प्रमुख शहर के लोगों की प्यास मटकों से बुझाने की कवायद कर रहा है। ये हाल तब है जबकि शहर में वाटर ATM, हेंडपंप और नलकूप हैं। लेकिन हाईटेक निगम उनका रख-रखाव नहीं कर पा रहा।
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ये है निगम का मटका अभियान
नगर निगम के जलकल विभाग के महाप्रबंधक केपी आनंद की ओर से एक आदेश जारी किया गया है। इस आदेश के तहत शहर के सभी बाजार, बस स्टाप पर पानी से भरे घड़े रखे जाएंगे। ताकि आते-जाते राहगीरों की गर्मी में प्यास बुझ सके। आदेश के मुताबिक इस बार अधिक गर्मी पड़ने और लूं चलने कीआशंका है। लिहाजा लोग गर्मी में अपनी प्यास बुझा सकें इसके लिए ये इंतजाम किया जा रहा है।
करोड़ों की लागत से लगे हेंडपंप-वाटर एटीएम-प्याऊ का क्या हाल?
नगर निगम हर वार्ड, हर गली-मुहल्ले और चौराहे तिराहों पर हर साल जहां हेंडपंप लगवाता है, वहीं शहर में पचासों जगह निगम के खर्च और स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से प्याऊ लगवाए जाते हैं। यही नहीं गर्मी में कई जगहों पर निगम नलकूपों के जरिये भी पीने के पानी का इंतजाम करता है। सवाल ये उठता है कि कहां गए वो तमाम निगम के वो इंतजाम जिन के जरिये लोगों की प्यास बुझाने के नाम पर करोड़ों का बजट खर्च हुआ?
खराब पड़े हैं अधिकांश वाटर ATM-हेंडपंप
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हालात ये हैं कि निगम व अन्य निधियों से लगवाए गए शहर के अधिकांश हेंडपंप और वाटर ATM खराब पड़े हैं। उन्हें लगवाने के दौरान स्थानीय जनप्रतिनिधि और नेता अफसरों संग फोटो खिंचवाकर वाहवाही तो खूब लूटते हैं। मगर, उनके मेंटिनेंस या फिर रख-रखाव पर कोई ध्यान नहीं देता। इसी का नतीजा है कि अधिकांश सार्वजनिक स्थलों पर लगे पीने के पानी के ये स्रोत या तो खराब पड़े हैं या फिर इनके पार्टस चोर-उचक्के उखाड़कर ले जा चुके हैं। वाटर एटीएम भी अधिकांश शहर में बंद हैं।
पानी माफियाओं ने बंद कराए वाटर ATM
शहर में पीने के पानी का अवैध व्यवसाय बड़ी ही तेजी से फल-फूल रहा है। गर्मी आते ही इनका संचालन करने वाले न सिर्फ मुंहमांगी कीमत पर पानी की बिक्री करते हैं, बल्कि अपने इर्द-गिर्द लगे सरकारी पानी के स्रोत जैसे हेंडपंप और वाटर ATM सरकारी अफसरों या कर्मचारियों से मिलीभगत करके बंद करा देते हैं। लेकिन इस ओर ध्यान देने की फुरसत किसी के पास नहीं है।
मटकों की आड़ में बजट लगेगा ठिकाने
हालाकि इस मुद्दे पर कोई भी अफसर या जनप्रतिनिधि बोलने को तैयार नहीं है। लेकिन शहर में दबी जुबान में सभी का कहना है कि मटकों के जरिये लोगों की प्यास बुझाने के पीछे 3722 करोड़ के बजट वाले निगम का सरकारी पैसा कागजों में ठिकाने लगाने की साजिश है। लोगों का यहां तक कहना है कि यदि निगम को पैसा खर्च करना है तो खराब हेंडपंप और वाटर प्लांटों को चालू कराने पर खर्च करे। ताकि लोगों को सस्ती कीमत पर पीने का पानी या मुफ्त में पेयजल की आपूर्ति हो सके।
कुछ समाजसेवी, निजी संस्थाए करती हैं प्रयास
एक तरफ जहां निगम पेयजल व्यवस्था का महज दिखावा करता है, वहीं इस जिला गाजियाबाद में ऐसे बहुत से लोग हैं जो समाजसेवा करते हैं और अपने खर्च पर लोगों को गर्मी के मौसम में पीने के पानी के इंतजाम कराते हैं। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं भी हैं जो हर साल तरह तरह से प्याऊ और वाटर कूलर भी लगवाती हैं। लेकिन अपने हेंडपंप और वाटर ATM को भूल चुके अफसर और कर्मचारी निजी खर्च पर लगने वाले प्याऊ और वाटर कूलर की भी देखरेख नहीं करते। नतीजा सामने है कि हाईटेक निगम को चौराहों-तिराहों पर मटके रखवाकर अपने हाईटेक होने के दावों को खुद ही पलीता लगाने का काम हो रहा है।