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अमेरिकी फंडिंग रुकते ही WHO की "हेल्थ" बिगड़ी, यूरोपीय देशों ने लगाई "treatment" की गुहार

फिनलैंड के हेल्थ एंड वेलफेयर इंस्टीट्यूट (टीएचएल) और पांच अन्य यूरोपीय स्वास्थ्य संगठनों के प्रमुखों का लैंसेट जर्नल में एक खुला पत्र प्रकाशित किया गया। इसमें अमेरिका के बाहर निकलने से होने वाली चुनौतियों का जिक्र है।

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Mukesh Pandit
WORLD HEALTH

Photograph: (File)

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हेलसिंकी, आईएएनएस। 

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अमेरिका के फंडिंग रोकने के बाद छह यूरोपीय देशों के स्वास्थ्य अधिकारियों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) में अपनी भूमिका बढ़ाने की अपील की है। फिनलैंड के हेल्थ एंड वेलफेयर इंस्टीट्यूट (टीएचएल) और पांच अन्य यूरोपीय स्वास्थ्य संगठनों के प्रमुखों का लैंसेट जर्नल में एक खुला पत्र प्रकाशित किया गया। इसमें अमेरिका के बाहर निकलने से होने वाली चुनौतियों का जिक्र किया गया और यूरोपीय देशों से डब्ल्यूएचओ में अपनी भूमिका बढ़ाने की अपील की गई।

...ताकि वैश्विक स्वास्थ्य नीति बरकरार रहे

टीएचएल की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, पत्र में यूरोपीय देशों से डब्ल्यूएचओ को अधिक वित्तीय मदद देने और संगठन में अधिक विशेषज्ञ भेजने का अनुरोध किया गया। इस पत्र पर नॉर्वे, डेनमार्क, फ्रांस, ऑस्ट्रिया और पुर्तगाल के स्वास्थ्य संस्थानों ने भी हस्ताक्षर किए। पत्र में कहा गया कि यूरोप के सपोर्ट से डब्ल्यूएचओ को स्थिरता मिलेगी और यह सुनिश्चित होगा कि वैश्विक स्वास्थ्य नीति में इसके मूल्य बरकरार रहें। अमेरिका डब्ल्यूएचओ का सबसे बड़ा वित्तीय योगदानकर्ता रहा है और संगठन को सैकड़ों विशेषज्ञ भी प्रदान करता है। पत्र में चेतावनी दी गई कि डब्ल्यूएचओ की अमेरिका पर अत्यधिक निर्भरता एक बड़ा जोखिम है, जो अब स्पष्ट रूप से सामने आ रहा है।

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WHO का वार्षिक बजट लगभग 3 बिलियन डॉलर

डब्ल्यूएचओ का वार्षिक बजट लगभग 3 बिलियन डॉलर है, जो वैश्विक जरूरतों के हिसाब से बहुत कम है। अगर अमेरिका बाहर होता है, तो संगठन को वित्त और विशेषज्ञता में बड़ी कमी का सामना करना पड़ेगा। डब्ल्यूएचओ महामारी और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में अहम भूमिका निभाता है।

साथ ही, यह अल्प विकसित देशों में स्वास्थ्य कार्यक्रमों, मातृ देखभाल और टीकाकरण अभियानों को भी संचालित करता है। बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जनवरी महीने के अंत में घोषणा की थी कि अमेरिका 2026 की शुरुआत में डब्ल्यूएचओ से अलग हो जाएगा। ट्रंप हमेशा से ही डब्ल्यूएचओ पर हमलावर रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद ही यह घोषणा कर दी थी।

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