यरुशलम, आईएएनएस। इजरायल के वैज्ञानिकों ने कुत्तों में क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के संभावित इलाज का सफल परीक्षण किया है। यह अध्ययन जर्नल ऑफ वेटरनरी इंटरनल मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है और इसमें विटामिन डी के सिंथेटिक रूप पैरिकल्सिटॉल के प्रभावों की जांच की गई।
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सीकेडी एक प्रोग्रेसिव कंडीशन
हिब्रू यूनिवर्सिटी ऑफ यरुशलम के शोधकर्ताओं ने इस दवा को किडनी रोग से जुड़े दो प्रमुख जटिलताओं – रेनल सेकेंडरी हाइपरपैराथायरायडिज्म (आरएचपीटी) और प्रोटीन्यूरिया (यूरीन में अत्यधिक प्रोटीन) पर परखा।
सीकेडी एक प्रोग्रेसिव कंडीशन है, जो धीरे-धीरे किडनी फेल्योर की ओर ले जाती है। यह बीमारी मुख्य रूप से उम्रदराज कुत्तों को प्रभावित करती है, लेकिन इन दिनों कम उम्र के कुत्तों में भी देखी जा सकती है। आरएचपीटी तब विकसित होता है, जब किडनी शरीर में कैल्शियम और फॉस्फोरस के स्तर को नियंत्रित करने में असमर्थ हो जाती है, जिससे पैराथायरायड हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है। यह हड्डियों को कमजोर कर सकता है और अन्य अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है।
शोधकर्ताओं ने 13 कुत्तों पर यह परीक्षण किया, जिन्हें 12-12 सप्ताह की दो अवधियों में पैरिकल्सिटॉल या प्लेसीबो दिया गया।
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रोग के विभिन्न लक्षण
शोधकर्ताओं ने पाया कि प्लेसीबो दिए जाने वाले कुत्तों में प्रोटीनुरिया खराब हो गया, लेकिन पैरिकल्सिटॉल दिए जाने वाले कुत्तों में स्थिर रहा, जिससे पता चलता है कि दवा किडनी फंक्शनिंग में मदद करती है। कुछ उपचारित कुत्तों में कैल्शियम के स्तर में मामूली वृद्धि देखी गई, हालांकि खुराक समायोजन से स्थिति को नियंत्रित करने में मदद मिली।
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कुत्तों में सीकेडी, जिसे क्रोनिक रीनल फेल्योर के रूप में भी जाना जाता है, एक प्रोग्रेसिव स्थिति है, जहां गुर्दे धीरे-धीरे ठीक से काम करने की अपनी क्षमता खो देते हैं, जिससे प्यास और पेशाब में वृद्धि, उल्टी और वजन कम होने जैसे विभिन्न लक्षण दिखाई देते हैं।
सामान्य लक्षणों में ज्यादा प्यास लगना, अधिक पेशाब आना, भूख में कमी, वजन कम होना, उल्टी और ऊर्जा में कमी शामिल हैं। सीकेडी के शुरुआती चरणों में, कोई लक्षण नहीं होते, क्योंकि गुर्दे अभी भी इसे नियंत्रित कर सकते हैं। कुत्तों में सीकेडी का सबसे आम कारण उम्र बढ़ना और गुर्दे में संक्रमण है।
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