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नेचर माइक्रोबायोलॉजी में पब्लिशहुई इस रिसर्च को ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी और हडसन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च (एचआईएमआर) ने लीड किया था। शुक्रवार को मोनाश यूनिवर्सिटी ने इसे प्रकाशित किया। इस स्टडी में बताया गया कि इंसान की आंत में हाइड्रोजन कैसे बनता है और इस्तेमाल होता है, और यह भी जांचा गया कि माइक्रोब्स इसके लेवल को कैसे कंट्रोल करते हैं।
हेल्दी गट माइक्रोबायोम को सपोर्ट मिलता
हाइड्रोजन तब बनता है जब आंत के माइक्रोब्स बिना पचे कार्बोहाइड्रेट को फर्मेंट करते हैं। हालांकि गैस का एक हिस्सा बाहर निकल जाता है, लेकिन इसके ज्यादातर हिस्से को दूसरा बैक्टीरिया दोबारा इस्तेमाल कर लेता है, जिससे डाइजेशन में मदद मिलती है और एक हेल्दी गट माइक्रोबायोम को सपोर्ट मिलता है। ये नतीजे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं के लिए नए माइक्रोबायोम-बेस्ड इलाज डेवलप करने में मदद कर सकते हैं।
पेट की हेल्थ के लिए एक छिपा हुआ जरूरी फैक्टर
इस स्टडी की पहली लेखक और मोनाश यूनिवर्सिटी और एचआईएमआर में पोस्टडॉक्टोरल साइंटिस्ट कैटलिन वेल्श ने कहा कि ज्यादातर लोग हर दिन लगभग एक लीटर गैस निकालते हैं, जिसमें से आधा हाइड्रोजन होता है। उन्होंने आगे कहा कि हाइड्रोजन सिर्फ पेट फूलने के लिए जिम्मेदार गैस से कहीं ज्यादा है; यह पेट की हेल्थ के लिए एक छिपा हुआ जरूरी फैक्टर है।
हाइड्रोजन का असामान्य लेवल संक्रमण
मल के सैंपल और आंत के टिशू से बैक्टीरिया की जांच के बाद, रिसर्चर्स ने पाया कि आंत के बैक्टीरिया एंजाइम ग्रुप बी (एफईएफई)-हाइड्रोजनेज के जरिए हाइड्रोजन बनाते हैं।इस स्टडी में यह भी दिखाया गया कि हाइड्रोजन का असामान्य लेवल संक्रमण, डाइजेस्टिव डिसऑर्डर और यहां तक कि कैंसर से भी जुड़ा हुआ है। ऐसे लेवल अक्सर पेट के फंक्शन का मूल्यांकन करने के लिए ब्रेथ टेस्ट में मापे जाते हैं।आईएएनएस
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